ब्लादिमीर जेलेंस्की के नाम खुला खत
ब्लादिमीर जेलेंस्की,
यूक्रेन के राष्ट्रपति
महोदय,
आज से पन्द्रह दिन पहले विश्व के जिस हिस्से से मैं आता हूं.. वहाँ शायद ही आपको कोई पहचानता होगा। पर आज की तारीख में आपकी चर्चा लगभग हर व्यक्ति के ज़बान पर है। और उसपर भी मजेदार बात ये है कि जिन लोगों की बौध्दिक समझ ऐसी है कि वो अपने ही देश के भौगोलिक हिस्से यानी पूर्वोत्तर के राज्यों के नागरिकों को नेपाली..चीनी..कह कर बुलाते हैं।अब वो लोग भी चंद कूड़ा न्यूज चैनलों को देख कर आपको और पुत्तनवा को सलाह दे रहे हैं। आज उसी क्रम में मैं भी आपको कुछ सलाह देना चाहता हूं।
महोदय, मैंने आपके बारे में सुना है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति बनने से पहले आप एक कॉमेडियन एक्टर थे। शायद आपकी कॉमेडी से खुश होकर यूक्रेन के नागरिकों ने आपको वहाँ का राष्ट्रपति बना दिया होगा, जिसकी कीमत आज वो चुका रहे हैं। केवल शेखी बघारने और तरह-तरह के वीडियो डालकर अपनी इमेज के चक्कर में आज आपने लाखों मासूम यूक्रेनियन को मरने और मारने पर मजबूर कर दिया है।
वर्तमान स्थिति को देख कर साफ़ पता चलता है कि आपके पास कोई कारगर रणनीति नहीं थी। आप तो बस 'जो बाइडेन' जो कि अपने ही देश के लिए एक बर्डन (भार) हैं, और नाटो ( बौने) लोगों के उकसाने पर अपने पृष्ठ भाग में रूस रूपी उड़ता तीर लेने के लिए दौड़ पड़े।
आप खुद सोचिए, जो बाइडेन का इतिहास क्या रहा है। वो अफगानिस्तान छोड़कर भाग गए, वो आपकी मदद क्या करेंगे! वैसे भी मेरी बात का विश्वास मानिए अगर आज अमेरिका में डेमोक्रेट की जगह कोई रिपब्लिकन राष्ट्रपति होता तो रूस ऐसी हरकत कभी नहीं करता। रिपब्लिकन इगो वाले होते हैं। बुश को ले लो, तालिबान की खटिया खड़ी कर दी।या अपने ट्रंप को ले लो, जिद्दी अड़ियल, जब तक राष्ट्रपति रहा चीन पर प्रतिबंध की बाढ़ लगा दी। ताईवान की खुल कर मदद की। ऐसे लोग ज्यादा सोचते नहीं...बस कर देते हैं। ये बात अपने पुत्तनवा को भी पता थी..इसीलिए उसने अमेरिका में सत्ता परिवर्तन का इंतजार किया।
दूसरे नंबर पर वो ब्रिटेन का प्रधानमंत्री 'बोरिस जॉनसन' जो कि नाकाम ब्रक्जिट कि पैदाइश हैं। वो इतना उलझे हैं कि कभी अपने बालों में कंघी भी नहीं करते..वो आपकी क्या मदद करेंगे। और वैश्विक राजनीतिक में वर्तमान समय मे ब्रिटेन और फ्रांस की क्या स्थिति है, ये सबको बता है। ये बस नाम के ताकतवर देश हैं। पता नहीं किस आधार पर ये देश अब तक सुरक्षा पारिषद में स्थाई सदस्य हैं।
जेलेंस्की जी! आपसे अनुरोध है कि इस लड़ाई को नाक की लड़ाई ना बनाएं। यदि आपके जीतने की स्थिति नहीं है तो बिना मतलब अपने इस खूबसूरत देश को अफगानिस्तान और वहाँ के पढ़े-लिखे नागरिको को तालिबानी लड़ाके न बनाए।
यदि युद्ध आपके हक में नहीं है तो युद्ध रोकना आपको कायर नहीं बना देगा। वैसे भी बर्नाड शॉ ने सही ही कहा है कि, " कायर होना...मुर्ख होने से बेहतर है।" बहादुरी तब दिखानी चाहिए जब उसके कुछ सकारात्मक परिणाम निकलें। या कम-से-कम उसके जब केवल आप की प्रभावित हो। बहादुरी के नाम पर अपने देश के लाखों लोगों को युद्ध में झोंक देना कहाँ की बुद्धिमानी है।
कभी एक जोक सुना था-
दो लड़के आपस में बात कर रहे थे
पहला बोलता है," मेरे पिता जी बहुत बहादुर थे..उन्होंने एक बार दो हिरण का शिकार अकेले किया।"
दूसरा लड़का बोलता है, "मेरे पता जी भी बहुत बहादुर थे..वो अकेले और निहत्थे ही एक शेर से लड़ गए थे।"
पहला लड़का ने अचरज से पूछा, " अच्छा ! शेर से अकेले ही लड़ गए..बहुत बहादुर थे, फिर क्या हुआ?"
दूसरा लड़का, " हुआ क्या...शेर उनको मार के खा गया।"
कुछ यही आलम आपका भी है। यदि हालात पक्ष में नहीं हो तो समझौता करना..'डरना' नहीं कहलाता है।
हमारे कृष्ण भगवान को ले लो। जरासंध के बार-बार हमलों से बचने के लिए वो रातोंरात मथुरा को छोडकर द्वारिका में जा बसे, और 'रणछोड़ दास' भी कहलाए। यानी रण छोड़ने वाला। लेकिन वो कायर नहीं थे। बस बुद्धिमान थे। उनको पता था उस युद्ध से उनकी जनता को नुकसान हो रहा था। इसीलिए उन्होंने युद्ध त्याग दिया।
महोदय, आपको ये भी समझना चाहिए कि आधुनिक युग में तमाम ताकतें युद्ध के पक्ष मे हैं। कुछ गधे तो बस चकल्लसबाजी के चक्कर में युद्ध देखना चाहते हैं। जैसे युध्द कोई बहुत मजेदार चीज है। लेकिन वहीँ पर बड़े हथियार निर्यातक देश,जिनकी अर्थव्यवस्था हथियारों की बिक्री पर निर्भर हैं..ऐसे देश, हमेशा युद्ध की स्थिति बनी रहे, यही चाहते हैं। हालाकि आप मेरे ब्लॉग नहीं पढ़ते वर्ना आपको पता होता, मैंने एक जगह कभी लिखा था कि, "पहले विश्व को युद्ध के लिए हथियारों की आवश्यकता थी लेकिन आधुनिक युग में हथियारों को बेचने के लिए युद्ध आवश्यक हो गए हैं।" इसका अहसास आपको भी हो गया होगा। पूरा पूर्वी यूरोप और उसमे भी बाल्टिक देशो में इस युद्ध के बाद हथियार खरीदने की होड़ लग जाएगी।
इसी के साथ अपनी बात खत्म करूंगा। आशा करता हूं। आप तक मेरी बात पहुंचेगी।
आपका शुभचिंतक
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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