ऐसा देश है मेरा भाग - 6
भारत शुरू से ही एक संगीत प्रधान देश रहा है। यहां तक पूरा एक वेद जिसे हम सामवेद के नाम से जानते हैं..वो पूरा वेद ही गीत गायन को समर्पित है। और वेदों में सबसे छोटा वेद होने के बावजूद सामवेद का महत्व इससे समझा जा सकता है कि गीता में कृष्ण बोलते हैं, "वेदानां सामवेदोऽस्मि"
यानी वेदों में मैं सामवेद हूं। कृष्ण के हाथ में बांसुरी भी उनके संगीत प्रेम को दर्शाती है।इसी तरह भारतीय ग्रंथो में लगभग 200 के ऊपर रागों का उल्लेख भी मिलता है।
फिर आज के समय ऐसा क्या हुआ है कि भारतीय संगीत इस वक्त अपने निम्न स्तर को छू रहा है। इसका मुख्य कारण मुझे जो समझ में आ रहा है वो ये है कि आधुनिक पीढ़ी की संगीत की समझ दिन पर दिन घटती जा रही है। और इसके भी पीछे का कारण ये है कि जैसे जैसे भारतीय, पाश्चात्य सभ्यता के नजदीक आते जा रहे हैं वैसे ही उनकी भारतीय संगीत के प्रति रुचि भी कम होती जा रही है।
ये दौर पाश्चात्य रैप संगीत का है। और मेरी नज़र में रैप और कुछ नहीं बस संगीत का रेप भर है। रैप संगीत में सुर और राग का कोई लेना-देना नहीं हैं। बस कुछ बेहूदे से शब्दों का एक विशेष 'ताल' के साथ उच्चारण करते रहो..इसे ही रैप संगीत बोलते हैं।
जिन्हें संगीत की थोड़ी भी समझ है उनको पता होगा कि संगीत के लिए 'ताल' के साथ साथ 'सुर' का भी बहुत महत्व है। संगीत के लिए सुर और ताल उसके दो पैर हैं इनमें से यदि कोई एक ना हो तो संगीत लंगड़ा हो जाता है।
रैप संगीत के साथ यही समस्या है उसमें ताल तो है बस सुर या लय नहीं है। सुर ना होने से ऐसे संगीत से मिठास (मैंलोडी) गायब हो जाती है। और बिना मैंलोडी के संगीत बस शोर है और कुछ नहीं।
यहां मैं ताल के महत्व को भी कम करके नहीं आंकता, संगीत के लिए ताल भी बहुत आवश्यक है।बिना ताल के संगीत बेताल हो जाता है और वो तांडव में बदल जाता है।
इसे लेकर एक रोचक कथा भी है। कहा जाता है एक बार क्रोध में आकर भगवान शिव ने तांडव नृत्य शुरू कर दिया।
इस तांडव से प्राकृति और धरती नष्ट होने लगी, तब ब्रह्मा ने मृदंग को बनाया। मृदंग बजने से शिव का नृत्य तालबद्ध हो गया। और वो नटराज हो गए। इस तरह श्रृष्टि नष्ट होने से बच गई। यानी बेसुरा होना तो चल जाएगा लेकिन बेताला होना बहुत बेकार माना जाता है।
संगीत के हो रहे निरंतर पतन के लिए हम सब जिम्मेदार हैं।हमारी शिक्षा पद्धति ही ऐसी रही है कि संगीत जैसा विषय दोयम दर्जे का हो गया है। इस समाज के कुछ नकचड़े रसविहीन और खुद को शिक्षक कहने वाले जहरीले लोगों ने संगीत के प्रति बच्चों के झुकाव को उनके विकास में बाधक माना, और उनकी प्रतिभा को शुरुआत से ही कुचल दिया। खासकर उत्तर भारत के हिन्दी भाषी राज्यों में आम जनमानस में ये बात फैल गई कि केवल गणित या उससे जुड़े विषय ही विद्वता के प्रतीक हैं। परंतु दक्षिण भारतीय राज्यों के साथ आज भी ऐसा नहीं हैं। वहाँ शास्त्रीय संगीत और नृत्य को बहुत ही महत्व दिया जाता है। वहाँ आज भी यदि किसी को संगीत या नृत्य के बारे में जानकारी नहीं है तो उसे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता।
इस सबके बाद भी भारतीय संगीत का पाश्चात्यीकरण होना एक गंभीर समस्या है। लुंगी डांस, लड़की ब्यूटीफुल कर गई चुल.. ब्लू है पानी पानी, जैसे गाने एक त्रासदी हैं, ऐसे रैप गानों में बात बात पर नग्नता ..दारू जैसे फूहड़ शब्दों की भरमार है। ऐसा संगीत पहले के संगीत की तरह आपको उन्मुक्त नहीं करता बल्कि एक उन्माद पैदा करता है।ऐसे संगीत में प्रेम नहीं झलकता बल्कि हवस झलकती है।ये संगीत आपके अंदर कचड़ा भर रहा है। ये आपको संवेदनशील नहीं बल्कि संवेदनहीन बना रहा है। इसलिए ऐसे संगीत से बचने की जरूरत है।
साथ ही अपने जीवनकाल में कम-से-कम एक वाद्ययंत्र जरूर सीखें। और अपने बच्चों को भी सिखाएँ। इंटरटेनमेंट के नाम पर आपके पास क्या है। वही झुंड में बेसरपैर की राजनीतिक चर्चायें..वही Netflix वही वही निहायत ही वाहियात टीवी सीरियल..न्यूज चैनल। उम्र ढलने पर ये सब कुछ काम नहीं आएगा। कोई भी वाद्ययंत्र जो भी आप सीखेंगे। वो आपके काम आएगा।
संगीत से प्रेम करिए क्योंकि संगीत ही हमको प्रेम करना सिखा सकता है।
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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