बजट
वैसे तो इस बार के बजट के बारे में ज्यादा चर्चा करने जैसा कुछ नहीं है। इसमें 25 साल आगे का टार्गेट है। एक खूबसूरत सा अनुमान है। और मेरी नजर में अनुमान एक दार्शनिक लिफ्फेबाजी है, जिसे पढ़े लिखे अर्थशास्त्री अपने अपने शब्दों में गढ़ते हैं। ये कुछ वैसा ही है जैसे किसी शर्मीले युवक द्वारा किसी इठलाती बलखाती खूबसूरत बाला के उसकी तरफ मुस्कराते देख कर ये अनुमान लगा लेना कि वो उससे प्रेम करती है। परंतु इजहार करने पर उसका जवाब ना में होता है। इसलिए अनुमान को बस अनुमान ही समझे..हनुमान नहीं, जो आपके सारे कष्ट हर लेंगे।
ये बजट उद्योगपतियों के किये खुशियो की बहार लेकर आया है।उत्पादन के क्षेत्र में लगी नई कंपनियों के लिए अब कार्पोरेट टैक्स 18 फीसदी के घटाकर 15 फीसद कर दिया गया है। वहीँ निम्न वर्गीय लोगों के ऊपर तो सरकार पहले से ही मेहरबान है। महीने में दो बार फ्री राशन , आवास, खाते में पैसा आदि के माध्यम से दोनों हाथों से पैसे लुटा रही है। रही बात मध्यमवर्गीय लोगों की तो सरकार को ये पता है कि ये वर्ग बहुत ही जिम्मेदार वर्ग है। इसीके ऊपर टेक्स की जिम्मेदारी है, इसीके ऊपर देश की जिम्मेदारी है इसी पर धर्म की जिम्मेदारी है। इसीलिए ये कुछ नहीं बोलेगा। जिम्मेदार जो ठहरा। और मध्यमवर्गीय व्यक्ति भी कम नहीं है। मजाल है कि उसके मुह से उफ भी निकल जाए।इसी मध्यवर्ग पर शायद "अमीर मीनाई" ने शेर लिखा था-
"वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उनसे
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता, जनाब आहिस्ता आहिस्ता"
यानी हालत ये है कि मध्य वर्ग की गर्दन कट रही है और वो बस इतनी गुजारिश कर रहा है कि थोड़ा आहिस्ता आहिस्ता काटो।
वैसे भी उद्योगपतियों को छूट मिलना जरूरी है..आखिर वो उद्योग के पती हैं। यहां दिन रात कमाने के चक्कर में मध्यमवर्गीय व्यक्ति ढंग से अपनी बीबी का पति भी नहीं बन पता,ऐसे में भला सरकार उस पर कैसे भरोसा कर सकती है?
वैसे एक बात तो माननी ही पड़ेगी कोई बात जो सरकार में जरूर है जो सरकार मध्यवर्ग से पैसे भी ऐंठ लेती है। और मध्य वर्ग नाराज भी नहीं होता। जैसे कोई नखरीली बीबी अपने नखरों के माध्यम से अपने पति से अपनी सब बात मनवा लेती है। इसे एक बहुत फेमस अवधी लोकगीत के माध्यम से समझते हैं।
इसमें बीबी बोलती है कि-
"भूसा बिकाय हमें लाय देव लटकन!"
तो उसका पति बोलता है-
"भूसा बिकैहे तो बैल का खइहैं "
इसपर उसकी पत्नि जवाब देती है-
"बैलौ बिकाय हमें लाय देव लटकन"
फिर पति सवाल करता है -
"बैल बिकैहै तो खेती कैसे होगी"
पत्नी जवाब देती है-
"खेतिव बिकाय हमें लाय देव लटकन"
फिर पती सवाल करता है-
" खेती बिकि जइहै तो हम का करबै"
पत्नी जवाब देती है-
"तुमहू बिकाव हमे लाय देव लटकन"
यहां पर पति मध्यवर्ग है नखरीली बीबी सरकार है। और लटकन विकास है, जिसके लिए सरकार परेशान है। और जिसे पाने के लिए अपने पति पर दबाव बना रही है।
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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