कयासों के भरोसे हो या अंदाज़े लगाते हो 
किसी भी बात की तह तक तुम्हें जाना नहीं आता !

कोई दिल खोल के रख दे, फरक पड़ता नहीं तुमको 
समझ कर नासमझ हो या समझना ही नहीं आता !

जहाँ देखो, बिखर जाते हो तिनके की तरह ढह कर 
फिसल कर गिर गए हो या संभलना ही नहीं आता !

कोई जिंदादिली दिल में नहीं ऐसा भी क्या जीना 
धड़कता ही नहीं दिल या धड़कना ही नहीं आता !

बहुत मजबूत बनते हो मगर कमजोर हो एकदम 
गरजते खूब हो लेकिन बरसना ही नहीं आता !

जो दिल पे बोझ हो कोई, करो हल्का उसे कह कर 
भरे बैठे हो सीने में छलकना ही नहीं आता !

                            ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'















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