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रची ऋतुराज ने हर डाल पर कलियों की रंगोली  पकी फैसले हैं खेतों में छटा एकदम लगे पीली  गुलाबी रंग गालों का हुआ हुआ उड़ते गुलालो से  लगे मानो प्रकृति ही खुद मनाने को चली होली ! गिरी नफ़रत की दीवारें चले बनकर के सब टोली  ज़हर थी जो ज़बाने वो बनी अब प्रेम की बोली  जो उलझे थे बिना मतलब के इक दूजे से झगड़े में  भुला मतभेद मिलजुलकर मनाएं प्रेम से होली ! बरसता प्रेम फागुन में समेटो भर लो अब झोली  समूची सृष्टि ने मानो इसी दिन आंख है खोली  तरसते होंठ व्याकुल मन हृदय उद्विग्न था जिनका  बना रसमय सकल तन मन हुईं कुछ इस तरह होली !                                    ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

नतीजों का नतीज़ा

वैसे तो भविष्य में क्या होगा इसको लेकर भविष्यवाणी करना मनुष्य के बस के बाहर की बात है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कयास जरूर लगाया जा सकता है। 2022 के पांच राज्यों के नतीजों के आधार पर उसमें भी खासकर उत्तर प्रदेश के नतीजों से आने वाले कल की कुछ झलक जरूर देखने को मिलती है। इन नतीजों से कम-से-कम हमको इतना जरूर पता चलता है कि भविष्य में भारत की राजनीति की दिशा क्या है। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की वापसी कोई मामूली घटना भर नहीं है। ये दर्शाती है कि उत्तर भारत के नागरिकों में किस हद तक भारतीय जनता पार्टी की जड़ें फैल चुकी हैं। हारने के बाद कोई कितना भी मजाक उड़ाए या कमियां निकाले पर अगर गहराई से मूल्यांकन किया जाये तो पता चलेगा की अखिलेश यादव ने बीजेपी के सामने अब तक का सबसे व्यवस्थित और मजबूत चुनाव लड़ा है। अखिलेश यादव ने अपने चुनावी प्रचार में नेतृत्व की उन ऊंचाईयों को छुआ जो किसी भी नेता के लिए आसान नहीं है। छोटे दलों को अपनी पार्टी से जोड़ने से लेकर प्रत्याशियों को टिकट देने तक अखिलेश की सूझबूझ और समझ की पराकाष्ठा को दर्शाता है। इतने बड़े प्रदेश के...

ब्लादिमीर जेलेंस्की के नाम खुला खत

प्रिय  ब्लादिमीर जेलेंस्की, यूक्रेन के राष्ट्रपति  महोदय,           आज से पन्द्रह दिन पहले विश्व के जिस हिस्से से मैं आता हूं.. वहाँ शायद ही आपको कोई पहचानता होगा। पर आज की तारीख में आपकी चर्चा लगभग हर व्यक्ति के ज़बान पर है। और उसपर भी मजेदार बात ये है कि जिन लोगों की बौध्दिक समझ ऐसी है कि वो अपने ही देश के भौगोलिक हिस्से यानी पूर्वोत्तर के राज्यों के नागरिकों को नेपाली..चीनी..कह कर बुलाते हैं।अब वो लोग भी चंद कूड़ा न्यूज चैनलों को देख कर आपको और पुत्तनवा को सलाह दे रहे हैं। आज उसी क्रम में मैं भी आपको कुछ सलाह देना चाहता हूं। महोदय, मैंने आपके बारे में सुना है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति बनने से पहले आप एक कॉमेडियन एक्टर थे। शायद आपकी कॉमेडी से खुश होकर यूक्रेन के नागरिकों ने आपको वहाँ का राष्ट्रपति बना दिया होगा, जिसकी कीमत आज वो चुका रहे हैं। केवल शेखी बघारने और तरह-तरह के वीडियो डालकर अपनी इमेज के चक्कर में आज आपने लाखों मासूम यूक्रेनियन को मरने और मारने पर मजबूर कर दिया है। वर्तमान स्थिति को देख कर साफ़ पता चलता है कि आपके पास कोई कारगर रणनीति ...

चुनावकर्मी की दुर्दशा

चुनाव कर्मियों के लिए बेहतर व्यवस्था की तो खैर पहले ही मुझे उम्मीद नहीं थी..लेकिन ये भी नहीं पता था निर्वाचन के ठेकेदार अधिकारी चुनाव कर्मी को कृमि (कीड़ा) ही समझते हैं। निर्वाचन के एक दिन पहले निर्वाचन सामग्री को कलेक्ट करने और चुनाव कर्मी को पोलिंग बूथ तक ले जाने वाले वाहनों की व्यवस्था को दूर से ही देख कर पता चल रहा था कि निर्वाचन अधिकारी महोदय व्यवस्था को लेकर कितने असंवेदनशील हैं। हजारों की संख्या में कर्मचारी एक ही गेट से अंदर जा रहा था और उसी गेट से EVM लेकर कर्मचारी वापस भी आ रहे थे। भेंड़ बकरियों की तरह लोग एक दूसरे को कचरते हुए उसी से अंदर बाहर जा रहे थे। कुछ अति उत्साही कर्मचारी बाकायदा दीवार कूद के भी जा रहे थे। एक बस पर पांच पांच बूथ की पोलिंग पार्टी और वहां ड्यूटी पर लगी पुलिस टीम भी जा रही थी। अधिकारियों की नजर में वे बस नहीं जैसे पुष्पक विमान था..जिसके बारे में मशहूर है कि उसमें चाहे जितने लोग बैठे एक सीट हमेशा खाली रहती थी। एक बात जो मुझे सबसे ज्यादा खलती है वो ये है कि कर्मचारी भी जानते हैं कि वो इस चुनाव में बहुत परेशान होंगे..लेकिन फिर भी इस परेशानी को सहजता से स्वी...
कयासों के भरोसे हो या अंदाज़े लगाते हो  किसी भी बात की तह तक तुम्हें जाना नहीं आता ! कोई दिल खोल के रख दे, फरक पड़ता नहीं तुमको  समझ कर नासमझ हो या समझना ही नहीं आता ! जहाँ देखो, बिखर जाते हो तिनके की तरह ढह कर  फिसल कर गिर गए हो या संभलना ही नहीं आता ! कोई जिंदादिली दिल में नहीं ऐसा भी क्या जीना  धड़कता ही नहीं दिल या धड़कना ही नहीं आता ! बहुत मजबूत बनते हो मगर कमजोर हो एकदम  गरजते खूब हो लेकिन बरसना ही नहीं आता ! जो दिल पे बोझ हो कोई, करो हल्का उसे कह कर  भरे बैठे हो सीने में छलकना ही नहीं आता !                             ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

शक्ति वंदना

शक्ति का स्वरुप, सार है सकल समष्टि का  सजल सदा वो प्रेम में सरल भी है सशक्त है  सात सुर इसी के उर में साज संग सरस्वती  शस्त्र जो उठा ले सारी श्रृष्टि ही निशस्त्र है  सूक्ष्म है कभी, कभी समग्रता स्वभाव में कभी-कभी वो कुछ नहीं कभी-कभी समस्त है  सहेजती है स्वप्न को वो शोक सारे त्याग के  सहज ही सारे श्रम करे कभी न वो निःशक्त है  समेट ले सहर्ष सब दुःखों को ऐसी संगिनी  है श्रोत वात्सल्य का वो भाव से सहस्त्र है  शत्रु शीश काट रक्त से धरा को सींच दे  दुष्ट दुर्जनों को जो डरा दे ऐसा अस्त्र है  सुबोधनी सुयोग्यनी सुसंगठित संजीवनी  सुसज्जितनी सुलक्षणी सुलोचनी सुभक्त है  स्त्रियों से ही प्रकाशमय हुई वसुंधरा  स्त्रियों बिना समाज शक्तिहीन अस्त है                   ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

चेतना

सती प्रथा का भारतीय समाज में बोलबाला था। कब्र में पैर लटकाए बूढे अपनी काम पिपासा को शांत करने लिये कम उम्र की लड़कियों से शादी करके जल्दी ही मर जाते थे। उनके साथ उन विधवाओं को भी जबरदस्ती जला दिया जाता था। अंग्रेज सरकार भी इसे हिन्दुओ का व्यक्तिगत मामाला समझ कर बहुत दिन तक नजरअंदाज करती रही। जब राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरोध में आवाज उठाई तो उस समय के हिन्दू समाज में उनकी बहुत बुराई हुई। राज राममोहन राय के विरोध में 1928 ई में राजा राधाकांत देव ने "धर्म सभा" की स्थापना करके "शब्दकल्पद्रूम" के संपादन के माध्यम से सती प्रथा का पुरजोर समर्थन किया। इस बात को  इस तरह पेश किया गया कि सती प्रथा का विरोध करना..हिन्दू धर्म का विरोध हो गया। अचरज की बात ये थी कि उनके इस अभियान के समर्थन में महिलाएं भी शामिल थी..जबकि सती प्रथा से उनको ही मुक्ति मिलती। लेकिन धर्म की अफीम ही ऐसी है जो कुछ भी करा सकती है। हाँ इतना जरूर है, नशा चाहे जितना तगड़ा क्यों न हो..एक न एक दिन उतरता जरूर है। राजा राममोहन राय के प्रति विरोध का आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके खुद के पिता ने भी उ...