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न्यूज़ मा दिखावत रहैं

"के हो ! मनौ अब लड़ाई होएन जई!" बड़े ताऊ की ये बात सुनकर अनायास मैं पूछ बैठा ,"किससे लड़ाई हो जाएगी दद्दू !" अर्रे भारत और चीन मा भईया! न्यूज़ मा दिखावत  रहैं कि एक से बड़ि कै एक मिसाइलै चल रही हैं!।  औ भईया चीन थर-थर,थर-थर डर के मारे कापि रहा है! अब जाके मुझे पूरा माजरा समझ में आया। असल में फ़्री वाला DTH और चाइनीज़ टीवी की आज कल गांवो में भरमार हो गई है। जहाँ एक ज़माने में किसी गांव में केवल एक दो घरो में टीवी हुआ करती थी वही अब लगभग हर घर में चाइनीज़ टीवी की भरमार हो गई है। और इस फ़्री DTH में लगभग सभी कूड़ा न्यूज़ चैनेल भी फ़्री में आते हैं।  बिचारे हमारे दद्दू इन्ही गॉसिप चैनलो का शिकार बन गये हैं। दरसल ये सारे न्यूज़ चैनेल युद्ध की उत्तेजना पैदा करने के लिए खबरों के साथ तमाम हॉलीवुड की मूवी के सीन लेके टीवी पर दिखाते रहते हैं। इसके साथ ही अमेरिका जैसे देशो के युद्ध अभ्यास की फुटेज भी बीच बीच में डालते रहते हैं। इनको देख के साधरण ग्रमीण भारतीय को ये सब सच लगने लगता है।  खैर मैने इतनी डिटेल में उनको समझाने के बजाय बस इतना कहा," दद्दू इन चैनलो की बातों में मत आओ, कहीं युद...

साम्यवादी प्रेम

दर्द ये आठ पहर देंगे दवा के नाम ज़हर देंगे ! पूंजीवादी प्रेम तुम्हारा जो बस पाना जानता है मेरा 'सर्वहारा' स्वभाव है दामन प्यार से भर देंगे ! तेरे मेरे वर्ग में यूं तो इक संघर्ष सदा से है तुम अवसर पाकर मारोगे हम हथियार भी धर देंगे ! सब साधन सत्ता तेरी है सारे स्रोत तुम्हारे हैं मेरे पास हृदय है केवल नाम तुम्हारे कर देंगे ! लेकिन 'भौतिक द्वंद्व' तम्हें भी चैन नहीं लेने देगा हम मिट कर भी 'साम्यवाद' का एक विचार अमर देंगे !        ● दीपक शर्मा 'सार्थक'
धर धीर धरा भी अधीर हुई नभ नम नयनो से बह निकले सुर संत सकल संताप भरे मृत मेरु, मनुज दुख से मचले अप्कर्म अधम की वृद्धि हुई दुष्कर्म दोष विस्तार हुआ फिर मध्यरात्रि अष्टम भादों धरती पे कृष्ण अवतार हुआ कारागृह कलि कृत नष्ट हुआ बंधन स्वतंत्र वसुदेव हुए दुर्गम गोकुल पथ सुगम हुआ यशुदा के भाग्य भी उदय हुए फिर पाप मुक्त धरणी करके श्रुति कर्मयोग विज्ञान दिया और धर्म ध्वजा स्थापित कर रण में गीता का ज्ञान दिया          ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

शिक्षा के निरुद्देश्य

जैसे ही नई शिक्षा नीति चर्चा में आई वैसे ही तमाम शिक्षाविदों को अपनी बिलों से बाहर आने का मौका मिल गया है। अब ये शिक्षाविद् रात में जैसे सियार चिल्लाते हैं वैसे ही सौ साल पुराने राग यानी 'शिक्षा का क्या उद्देश्य है', इसको लेकर शोर मचाने लगे हैं।हालत ये है की इन सौ सालो में शिक्षा के उद्देश्य को लेकर जितनी बहस हुई है वो अगर स्वयं माँ सरस्वती को पता चल जाए तो वो भी शिक्षा के उद्देश्य को लेकर भ्रम में पड़ जाएंगी। शिक्षा के उद्देश्य वाले इस महाकाव्य से मेरा पाला बी.एड. करने के दौरान पड़ा।तबसे लेकर अब तक न जाने ऐसे कितने ही खोखले उद्देश्य को पढता आया हूँ।पर हकीक़त में  शिक्षा के उद्देश्य की आड़ में शुरु से ही घिनौने लोग अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगे हैं। सबसे पहले मैकाले भाईसाहब के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य भारत में ऐसा वर्ग तैयार करना था, जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय हों लेकिन वह अपनी अभिरूचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों। और आज के भारत को देख के साफ पता चलता है की धूर्त मैकाले अपने उद्देश्य में सफल हो गया है। भारत के नेताओं के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य अपने काले ...

मौलिकता का अंकुरण

उनका मानना है कि  जो वो मनाते हैं वो सब माने! वो चाहते हैं की जो वो चाहते हैं वो सब चाहें! उनका सोचना है कि  जैसा वो सोचते हैं वही सब सोचें! और इस तरह वो जो भी मानते चाहते या सोचते हैं  वही औरो पे थोपते हैं! इसी तरह दुनियां में कुछ भी मौलिक और नया होने से रोकते हैं! और इसी प्रयास में  दिन रात कुत्ते के जैसे भौंकते हैं! लेकिन बदलाव की आंधी में  अवरोध सारे उड़ जाते हैं  परिवर्तन की भट्ठी में  जड़ विचार जल जाते हैं  फिर नया दर्शन नई सोच निर्वात में स्फुटित होती है! जड़ता का सीना चीर के मौलिकता अंकुरित होती है!           ●दीपक शर्मा 'सार्थक'

बेबस मध्यवर्ग

 बेबस मध्यवर्ग ! सामाजिक बंधन से बंधा  कायदे कानून से लदा न उच्चवर्ग जैसी मुक्ती न निम्नवर्ग जैसी चुस्ती जीवन एकदम नर्क बेबस मध्यवर्ग ! मध्यक्रम बल्लेबाज सा दायित्वों के निर्वाह सा न ओपनर सी आज़ादी न निचले क्रम से आत्मघाती  हर चीज़ में बेड़ागर्क बेबस मध्यवर्ग ! कस्बे जैसी जिन्दगी हर जगह फैली गंदगी  न शहर जैसी स्वतंत्रता  न गांव जैसी उदंडता हर घटना से पड़ता फर्क बेबस मध्यवर्ग !        ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

हिजड़े गांव

अबे बेहूदे गांव ! क्यूँ दिन पर दिन बदलते जा रहे हो शहर बनने की हड़बड़ाहट में, अब न गांव ही रह गए हो, न ही पूरी तरह शरह बन पा रहे हो ! तुम्हारे पास न तो शहर वाली सुविधायें हैं  और न ही गांव वाला सुकून और हवाएं हैं  न शहर वाली नाली सड़के सीवर वाला प्लान है न ही गांव वाली हरियाली बाग खलियान है अबे अधकचरे बेहूदे गांव तुम न इधर में रहे न उधर में   सुना साले हिजड़े गांव !                ●दीपक शर्मा 'सार्थक'