हिजड़े गांव
क्यूँ दिन पर दिन बदलते जा रहे हो
शहर बनने की हड़बड़ाहट में,
अब न गांव ही रह गए हो,
न ही पूरी तरह शरह बन पा रहे हो !
तुम्हारे पास न तो शहर वाली सुविधायें हैं
और न ही गांव वाला सुकून और हवाएं हैं
न शहर वाली नाली सड़के सीवर वाला प्लान है
न ही गांव वाली हरियाली बाग खलियान है
अबे अधकचरे बेहूदे गांव
तुम न इधर में रहे न उधर में
सुना साले हिजड़े गांव !
●दीपक शर्मा 'सार्थक'
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