फ़्री और सस्ता
बड़ी से बड़ी और टिटपुजिया से टिटपुजिया कंपनी, फलाने के साथ ढिमाका फ़्री, इसके साथ वो फ़्री, वाले लुभावने ऑफर निकालती है और इन ऑफरों को देख के ग्राहकों की लार एकदम उसी तरह से टपकने लगती है जैसे एक विशेष जानवर की लार खाने को देख के टपकने लगती है। लेकिन फ़्री के लालच में लोग ये भूल जाते हैं की ये फ़्री ग्राहको को फंसाने के लिए मात्र एक फसला (मछली को फंसाने वाला जाल ) है।बाज़ार की सबसे बाज़ारु नीति यही है फ़्री को चारे की तरह इस्तेमाल करके ग्राहको को कैसे फांसें।
पाँच टीशर्ट पर एक टीशर्ट फ़्री! दस हज़ार की शॉपिंग पे अगली बार शॉपिंग करने पर एक हज़ार रुपिये की छूट! बाज़ार में इसी तरह के हजारों घटिया ऑफ़रो की भरमार मिल जाएगी। और ग्राहक भी फ़्री का चारा खाने के चक्कर में बाज़ार का काँटा निगल जाते हैं और फँस जाते हैं।
ऐसे ही फ़्री के मोह में सरकारी गल्ले की दुकानों पे पचास-पचास बीघे के कास्तकार भी पूरा दिन लाईन में लग के गुजार देते हैं।इसी तरह फ़्री के चक्कर में बहुत से लोग फ्रॉड लोगो को अपनी बैंक की सारी डिटेल देके फँस जाते हैं।
यहां गौर करने वाली बात ये है की फ़्री का ये सारा चक्कर मात्र लालच पर आधारित है। कहावत ही कही गई है की "लालच लै परलोग नसावै!" लालच में फँसके ही ग्राहक फ़्री पाने को मचलने लगते हैं और अपना नुक्सान कर बैठते हैं।
अब बात सस्ते की करते हैं।शायद वेदो और उपनिषदों मे ऋषि लोग ये बात लिखना भूल गये थे की दुनियां में सबसे ज़्यादा मोल भाव विश्वगुरु(स्वायंभु) भारत में ही होता है।
एक किलो आलू खरीदने के लिए हम भारतीय दस दुकानों पर जा के मोल भाव करते हैं। अगर मोल भाव करके एक भी रुपिए का सस्ता सामान यहाँ लोगो को मिल जाता है तो उनको इतनी खुशी मिलती है जितनी खुशी रावण को कुवेर से लंका प्राप्त करने पर भी नहीं हुई होगी।
अब इस दौर में जब भारत और चीन की आपस में ठनी हुई है।और एक सुर में बहुत से राष्ट्रवादी चाइनीज़ मोबाइल से फेसबुक पे मैसज कर रहे हैं की चाइना के सामान का बहिष्कार किया जाना चाहिए।लेकिन ये बात भी किसी से ढकी छुपी नहीं है की जैसे हम भारतीय पूरी दुनियां में सस्ता सामान खरीदने के लिए मशहूर हैं वैसे ही चीन पूरी दुनियां में सबसे सस्ता सामान बनाने के लिए जाना जाता है।जो इलेक्ट्रॉनिक सामान अमेरिका और युरोप जैसे देश दस हज़ार में बनाते है वही सामान चीन दो हज़ार में बना के धड़ल्ले से बेच रहा है।मोटर, बैटरी,इलेक्ट्रोनिक चिप,सोलर पैनल,कंडेक्टर,चार्जर,स्पीकर, ऐसे ही हजारों सामान को बहुत ही सस्ते रेट में बनाने में चीन को महारत हासिल है।यहांं तक विश्व की बड़ी से बड़ी ब्राण्डेड कम्पनियां अपने अपने प्रोडक्ट्स को बनाने में प्रयोग होने वाले तमाम छोटे बड़े सामान चीन से ही मंगवाते हैं।ताकी उनके प्रोडक्ट की कीमत ज़्यादा न हो पाए।
अब जब एक देश सस्ता बनाने में माहिर है और दूसरा देश सस्ता खरीदने में माहिर है तो ऐसे में उन दोनो देशो के बीच व्यापार स्वाभाविक है।और व्यापार की सबसे बड़ी खराबी यही है की व्यापार मात्र व्यापार होता है। उसमे न राष्ट्रवाद की जगह होती है न ही स्वदेशी की संवेदना ही होती है।
हाँ इतना ज़रूर है की इस विकराल व्यापार का सामना करने के लिए फिर कोई गांधी, आधी धोती की लंगोटी और अधनंगा शरीर लेके सामने आ जाए। और लोगों को फिर से उपभोग्तावादी जिन्दगी से किनारा करके, थोड़े में गुजारा करने और केवल स्वदेशी अपनाने को प्रेरित करे तो इसका सामना किया जा सकता है। बाकी टिक-टॉक डिलीट करके केवल झुठा आत्म गौरव प्राप्त हो सकता है, चीन का कुछ नहीं बिगड़ेगा।
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
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