मौलिकता का अंकुरण
जो वो मनाते हैं
वो सब माने!
वो चाहते हैं की
जो वो चाहते हैं
वो सब चाहें!
उनका सोचना है कि
जैसा वो सोचते हैं
वही सब सोचें!
और इस तरह वो जो भी
मानते चाहते या सोचते हैं
वही औरो पे थोपते हैं!
इसी तरह दुनियां में कुछ भी
मौलिक और नया
होने से रोकते हैं!
और इसी प्रयास में
दिन रात कुत्ते के जैसे
भौंकते हैं!
लेकिन बदलाव की आंधी में
अवरोध सारे उड़ जाते हैं
परिवर्तन की भट्ठी में
जड़ विचार जल जाते हैं
फिर नया दर्शन नई सोच
निर्वात में स्फुटित होती है!
जड़ता का सीना चीर के
मौलिकता अंकुरित होती है!
●दीपक शर्मा 'सार्थक'
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