शिक्षा के निरुद्देश्य
शिक्षा के उद्देश्य वाले इस महाकाव्य से मेरा पाला बी.एड. करने के दौरान पड़ा।तबसे लेकर अब तक न जाने ऐसे कितने ही खोखले उद्देश्य को पढता आया हूँ।पर हकीक़त में शिक्षा के उद्देश्य की आड़ में शुरु से ही घिनौने लोग अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगे हैं।
सबसे पहले मैकाले भाईसाहब के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य भारत में ऐसा वर्ग तैयार करना था, जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय हों लेकिन वह अपनी अभिरूचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों। और आज के भारत को देख के साफ पता चलता है की धूर्त मैकाले अपने उद्देश्य में सफल हो गया है।
भारत के नेताओं के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य अपने काले धन को सफ़ेद करना है। आज देश में प्राईमरी से लेके पी.एच.डी. तक की जितनी संस्थाए हैं उनमे से 90 प्रतिशत किसी न किसी नेता की हैं। और सबसे ज़्यादा काला धन इन्ही में लगा है।
सत्ता के अनुसार तो शिक्षा के हजारों गिरे हुए और छुपे हुए उद्देश्य हैं। पर कुछ प्रमुख उद्देश्य जैसे चुनाव के टाईम पे अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए ढ़ेर सारे पद निकालना। इन भर्तियो में उनके ही वोट बैंक वाले लोग ही नौकरी पायें इसके लिए तोड़ मरोड़ के वैसी की विज्ञप्ति निकालना।इसी तरह पाठ्यक्रम में अपनी विचारधारा वाले महापुरुषो को विशेष स्थान देना।अपनी पार्टी के झंडे वाले रंग के बैग और ड्रेस बच्चो में वितरित करवाना।ट्रांसफर के नाम में सालाना करोड़ो रुपिये ऐथना।
इतने सारे उद्देश्यो की भीड़ में असली शिक्षा कहाँ गायब हो गई है ये एक पहेली बन कर रह गई है। ये तो मानना ही पड़ेगा की शिक्षा ही मात्र इकलौता ऐसा माध्यम है जिसकी बदौलत हम एक बेहतर इन्सान और एक बेहतर देश बना सकते हैं।पर इसके लिए फाईव स्टार होटलनुमा ऑफिस में बैठ के शिक्षा के उद्देश्य पे भाषण झाड़ने और यूरोप के विकशित देशो में बाल मनोविज्ञान पे हो रही नई-नई खोजों की नकल करके भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश में उनको अक्षरशः थोपने के बजाय, यहां की जमीनी हकीक़त के अनुसार एक ठोस नीति बनाने की ज़रूरत है। बाकी शिक्षा के उद्देश्य की शृंखला में हर साल दस बारह उद्देश्य और जोड़ने से कुछ हासिल नहीं होने वाला।
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
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