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हिजड़े गांव

अबे बेहूदे गांव ! क्यूँ दिन पर दिन बदलते जा रहे हो शहर बनने की हड़बड़ाहट में, अब न गांव ही रह गए हो, न ही पूरी तरह शरह बन पा रहे हो ! तुम्हारे पास न तो शहर वाली सुविधायें हैं  और न ही गांव वाला सुकून और हवाएं हैं  न शहर वाली नाली सड़के सीवर वाला प्लान है न ही गांव वाली हरियाली बाग खलियान है अबे अधकचरे बेहूदे गांव तुम न इधर में रहे न उधर में   सुना साले हिजड़े गांव !                ●दीपक शर्मा 'सार्थक'

फ़्री और सस्ता

जीन्स को अपने पिछवाड़े की सबसे निचली तलछटी पे बाँध के जॉकी की चड्डी दिखाने वाले, और बात-बात पर एप्पल वाला आईफोन निकाल कर दिखावा करने वाले महमनवों को अगर किनारे कर दिया जाए तो बाकी बचे भारतीयों के लिए, फ़्री और सस्ता सामान सदा से माइने रखता आया है।लेकिन अगर गहराई से सोच कर देखें तो पता चलेगा की इस संसार में प्रेम को छोड़ के कुछ भी फ़्री नहीं मिलता।यहाँ प्रेम से मेरा आशय, "मेला बाबू मेले जन्मदिन पे कौन छा मोबाइल गिफ्ट में देगा!" वाली हरामखोरी से नहीं है। यहाँ प्रेम से मेरा मतलब नि:स्वार्थ एवं नि:छल प्रेम से है।और ऐसे प्रेम को छोड़ कर इन्सान को हर चीज़ की क़ीमत चुकानी पड़ती है। बस केवल समझ का फेर है जो हम इस बात को जान नहीं पाते। बड़ी से बड़ी और टिटपुजिया से टिटपुजिया कंपनी, फलाने के साथ ढिमाका फ़्री, इसके साथ वो फ़्री, वाले लुभावने ऑफर निकालती है और इन ऑफरों को देख के ग्राहकों की लार एकदम उसी तरह से टपकने लगती है जैसे एक विशेष जानवर की लार खाने को देख के टपकने लगती है। लेकिन फ़्री के लालच में लोग ये भूल जाते हैं की ये फ़्री ग्राहको को फंसाने के लिए मात्र एक फसला (मछली को फंसाने वाला जाल ) है...
सच पूछों तो आत्महत्या में हत्या होती है खुद को विशेष समझने के भ्रम की ! खुद से जुड़ी अथाह अपेक्षाओं की ! सारे हालातों को थमाने की ज़िद की ! खयाली मकडजाल को बुनने के लत की ! रही बात आत्महत्या की तो आत्मा की हत्या  कोई कैसे कर सकता है! आत्मा अजर अमर जो ठहरी!             ●दीपक शर्मा 'सार्थक'

अंध दूरदर्शी

दास राज! मेरे पिता महाराज शान्तनु आप की बेटी देवी सत्यवती से प्रेम करते हैं।फिर आप को उनके विवाह में क्या आपत्ति है? मुझे आपत्ति नहीं है राजकुमार देववृत ! परन्तु इस विवाह से मेरी पुत्री को क्या प्राप्त होगा? अरे दास राज! वो महान कुरु वंश की महारानी बन जाएंगी।और क्या चाहिए ? पर राजकुमार थोडा और आगे की सोचो! मेरी पुत्री सत्यवती का पुत्र कभी राजा नहीं बन पायेगा।क्योंकि महाराज शान्तनु के बाद राजा तो आप बनेंगे। तो ठीक है दास राज ! मैं ये प्रण लेता हूँ कि मै राजा नहीं बनुंगा। देवी सत्यवती से उत्पन्न पुत्र ही राजा बनेगा। वो तो ठीक है राजकुमार लेकिन थोड़ा और आगे की सोचो।आप तो राजा नहीं बनेंगे लेकिन आगे चलके आप के पुत्र राज्य पर अपना दावा ठोक देंगे। फिर मेरी पुत्री के पुत्रों का क्या होगा? अगर ऐसा है तो मैं प्रण करता हूँ की मै आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करूंगा। कभी विवाह नहीं करूंगा।और संतानहीन रहूँगा। उक्त घटनाक्रम महाभारत में भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से प्रचलित है।यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि इस घटनाक्रम में भीष्म के महान त्याग और उनकी अखंड प्रतिज्ञा केंद्र में रहती है और सत्यवती के दो कौड़ी के ...
'मोहोम्मद' का मतलब 'मोहब्बत' ही है बस खलिश को दिलों से हटाओ जरा ! सारे शिकवे गिले पल में मिट जाएँगे  एक दूजे को दिल में बसाओ जरा ! सिर्फ इंसानियत का ही पैगाम है सारे मज़हब की पुस्कत उठाओ ज़रा ! नफ़रतों की जलन पल में बुझ जाएगी प्यार में एक डुबकी लगाओ ज़रा ! साजिशन स्वार्थी तुमको लड़वा रहे  आँख से अपने पर्दा हटाओ ज़रा ! इक सदी दुश्मनी में गुज़र ही गई दोस्ती का दिया अब जलाओ ज़रा ! साथ मिलके रहें मुल्क आबाद हो ऐसी उम्मीद दिल में जगाओ ज़रा ! मज़हबी धर्मिक सब सहिष्णु बने  एक ही सुर में बस गुनगुनाओ ज़रा !                      ●दीपक शर्मा 'सार्थक'

भक्त या चमचे

मनु महाराज ने किसी जमाने में समाज को चार वर्णों में विभाजित किया था।जिसका खामियाजा आज तक समाज भुगत रहा है।पर इधर कुछ वर्षो से दो मुख्य राजनीतिक दलों के आई.टी.सेल के उकसाने के बदौलत भेड़ चाल चलने वाले भारतीयों(मेरे अनुसार नहीं, भारतेंदु जी के अनुसार) ने खुद को 'भक्त' और 'चमचे' नामक की दो जातियों में स्वत: ही बांट लिया है। जैसे सांख्य दर्शन में मोक्ष के लिए द्वेत मार्ग (यानी दो मार्ग) बतलाया गया है। वैसे ही आज के समय किसी व्यक्ति को उसके विचारों के अनुसार दो ही श्रेणी में रखा जायेगा। और इन श्रेणी के अनुसार अगर किसी के भी विचार सत्ता पक्ष से मेल नहीं खाते हैं तो वो 'चमचा' है और अगर वो सत्ता पक्ष के किसी कार्य की तारीफ कर दे तो वो 'भक्त' है। अब ये स्थिति इतनी विकराल हो गई है की किसी के विचार चाहे जितने मौलिक एवं यथार्थवादी क्यों न हो पर ये भेड़ मानसिकता वाले लोग उन विचारों को भक्त और चमचा नाम के दो कोल्हुओ में जबरस्ती ठेल कर उनका रस निकाल लेते हैं। भारतेंदु जी के ही अनुसार इन भेड़ों को चलाने या कह लीजिए चराने के लिए एक इंजन की आवश्यकता होती है। पर वर्तमान समय म...
उसके खिलाफ़ एक भी गवाह न मिला सारे गुनाह करके वो बेदाग हो गया कानून तोड़ के मरोड़ के बदल दिया था वो कुसूरवार मगर पाक़ हो गया मुज़रिम भी था वही, वही सफ़ेदपोश भी हर बार की तरह ये इत्तफ़ाक हो गया  अपने हुकूक के लिए जो लड़ रहा था वो ताउम्र लड़ते ही सुपुर्द-ए-खाक़ हो गया मुंसिफ़ भी बिक गया अदालतें भी बिक गई इन्साफ मिलना अब बड़ा मज़ाक हो गया मुर्दा अवाम डर से बेज़ुबान हो गई जिसने किया सवाल जल के राख हो गया            ●दीपक शर्मा 'सार्थक'