जीन्स को अपने पिछवाड़े की सबसे निचली तलछटी पे बाँध के जॉकी की चड्डी दिखाने वाले, और बात-बात पर एप्पल वाला आईफोन निकाल कर दिखावा करने वाले महमनवों को अगर किनारे कर दिया जाए तो बाकी बचे भारतीयों के लिए, फ़्री और सस्ता सामान सदा से माइने रखता आया है।लेकिन अगर गहराई से सोच कर देखें तो पता चलेगा की इस संसार में प्रेम को छोड़ के कुछ भी फ़्री नहीं मिलता।यहाँ प्रेम से मेरा आशय, "मेला बाबू मेले जन्मदिन पे कौन छा मोबाइल गिफ्ट में देगा!" वाली हरामखोरी से नहीं है। यहाँ प्रेम से मेरा मतलब नि:स्वार्थ एवं नि:छल प्रेम से है।और ऐसे प्रेम को छोड़ कर इन्सान को हर चीज़ की क़ीमत चुकानी पड़ती है। बस केवल समझ का फेर है जो हम इस बात को जान नहीं पाते। बड़ी से बड़ी और टिटपुजिया से टिटपुजिया कंपनी, फलाने के साथ ढिमाका फ़्री, इसके साथ वो फ़्री, वाले लुभावने ऑफर निकालती है और इन ऑफरों को देख के ग्राहकों की लार एकदम उसी तरह से टपकने लगती है जैसे एक विशेष जानवर की लार खाने को देख के टपकने लगती है। लेकिन फ़्री के लालच में लोग ये भूल जाते हैं की ये फ़्री ग्राहको को फंसाने के लिए मात्र एक फसला (मछली को फंसाने वाला जाल ) है...