भक्त या चमचे
जैसे सांख्य दर्शन में मोक्ष के लिए द्वेत मार्ग (यानी दो मार्ग) बतलाया गया है। वैसे ही आज के समय किसी व्यक्ति को उसके विचारों के अनुसार दो ही श्रेणी में रखा जायेगा। और इन श्रेणी के अनुसार अगर किसी के भी विचार सत्ता पक्ष से मेल नहीं खाते हैं तो वो 'चमचा' है और अगर वो सत्ता पक्ष के किसी कार्य की तारीफ कर दे तो वो 'भक्त' है।
अब ये स्थिति इतनी विकराल हो गई है की किसी के विचार चाहे जितने मौलिक एवं यथार्थवादी क्यों न हो पर ये भेड़ मानसिकता वाले लोग उन विचारों को भक्त और चमचा नाम के दो कोल्हुओ में जबरस्ती ठेल कर उनका रस निकाल लेते हैं।
भारतेंदु जी के ही अनुसार इन भेड़ों को चलाने या कह लीजिए चराने के लिए एक इंजन की आवश्यकता होती है। पर वर्तमान समय में इन भेड़ो को चराने के लिए एक नहीं बल्कि सैकडों की संख्या में इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चैनेल हैं। ये न्यूज़ चैनेल दिन रात इन भेड़ो के दिमाग को कूड़ा खबरों से भरते रहते हैं।वैसे तो इन भेड़ो का अपना विवेक कब का तेल लेने जा चुका है पर अब इनकी बौद्धिक विकलांगता इस स्तर पर पहुच चुकी है जहाँ इनको अपने नेता की आलोचना,देश की आलोचना लगने लगी है।इनकी नज़रो में अब इनके नेता समस्त विकारों से रहित हो गये हैं। अब स्थिति ये है की इन कूड़ा खबरों को देख के ताज़ा-ताज़ा बुद्धिजीवी बनी भेड़ें, चमचा और भक्त रुपी दो अस्त्रों से किसी भी तरह के यथार्थ विचारों पर जंगलीयो की तरह हमला कर देती हैं।इनके दुष्प्रभाव के कारण अब एक ही घर में कोई भक्त है तो कोई चमचा हो गया है।
अब इन भेड़ो को कौन समझाए की ये समय राजनीति का सबसे धूर्त काल है। जहाँ राजनीतिक पार्टियाँ अपने आई.टी.सेल के माध्यम से नई नई अवधारणाए बना रही हैं।
इन्ही की बदौलत कोई नेता भगवान बना जा रहा है तो कोई पप्पू बना दिया गया है। सोशल मीडिया पर लाखों की संख्या में लगे इन पार्टियों के आई.टी.सेल के बुलडॉग, आलोचना करने वाले को नोचने घसीटने लगते हैं।
अच्छा ही है जो इस समय कोई भारतेंदु ,निराला और पन्त नहीं है वरना इन भेड़ो द्वारा उनको भी कबका भक्त या चमचा बना दिया गया होता।
●दीपक शर्मा 'सार्थक'
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