इक अदत से सकूं की जगह ढूढ़ते
वो मोहोब्बत के दरिया में उतरें भी तो
ज़िन्दगी बीतती है सतह ढूढ़ते
खोजने में रहे प्यार को जब तलक
बेबसी से भटकते रहे तब तलक
वो समझने में उलझे रहे प्यार को
ज़िन्दगी गुजरी पूरी मिली न झलक
इल्म उनको मोहोब्बत का होता अगर
यूं भटकते न पाने को वो दर बदर
प्यार मिल जाता है बेवजह बेसबब
ढूढ़ने से नहीं मिलती इसकी डगर
प्यार एक खुबसूरत सा अहसास है
प्यार में जीत है न कोई हार है
प्यार आधर है सारे संसार का
इसमे डूबा है जो बस वही पार है
●दीपक शर्मा 'सार्थक'
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