इमेज़ का बोझ
मेरे ये फलाने मित्र अपनी इमेज़ को इनती गम्भीरता से जीते हैं कि आज तक वो कभी खुद की बनाई इमेज़ के पायजामे से बाहर नहीं आए हैं।पर न जाने क्यों उनको देख के कभी-कभी लगता है की उन्होंने खुद की इतनी विशालकाय इमेज़ बना रखी है जिसके नीचे दब कर उनका असली वाला मरिल्ला व्यक्तित्व बकरी के बच्चे के जैसा मिमिया रहा हो।पर फिर भी वो गोबर्धन पर्वत की तरह अपनी इमेज़ को लादे मन्द-मन्द दांत निकाल के मुस्कराया(खिसियाया ) करते हैं।
उनकी यही तो विशेषता है की वो खुद को इतना विशेष(युनीक) समझने लगे हैं कि कभी-कभी उनको लगता है कि "अपुन इच ही भगवान है !"। बस अफ़सोस इसी बात का है की वो अभी तक इस बात को साबित नहीं कर पाये हैं।बिचारे करें भी कैसे, उनकी माँ गुजर गई है वरना उन्हीं से पूछ लेते की- "हे माँ ! मैने आप के गर्भ से जन्म लिया था या जैसे श्री राम कौशल्या के सामने जैसे प्रकट हुए थे, वैसे मैं भी हुआ था!" पर माँ तो चल बसी हैं इसलिये उन्होने अपनी इस 'भै प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी' वाली फीलिंग को दिल के किसी कोने में दफन कर रखा है। और मौखिक ही अपने ज्ञान को लोगों के सामने झाड़ के मन में संतोष कर लेते हैं की एक न एक दिन लोग जान ही जाएंगे की वो कितने विशेष हैं।
मेरे फलाने मित्र खुद की बनाई इमेज़ को लोगों तक अक्षरशः पहुचाने के लिए फड़फड़ाते तो बहुत हैं लेकिन ये निर्मम दुनियां उनको कोई अवसर ही नहीं देती है। कृष्ण और राम के समय आमने-सामने से युद्ध होता था। इसिलिए कृष्ण को बीच युद्ध में गीता का ज्ञान देने का अवसर मिल गया था। पर आज कल की दुनियां मूर्ख है। वो आमने-सामने से युद्ध ही नहीं करती है। अब तो ट्रेड वार का ज़माना है। जिन देशों की आपस में नहीं बनती वो एक दूसरे का एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट रोक देते हैं। यूनाइटेड नेशन में लम्बे-लम्बे भाषण होते हैं और अगर बात हद से बाहर हो गई हो तो रात में चोरी छुपे सर्जिकल स्ट्राइक कर देते हैं।
ऐसे में मेरे फलाने मित्र को कृष्ण की तरह दोनो सेनाओं के बीच अपना रथ रोक के ज्ञान देने का अवसर कैसे मिले!
अगर उनको भी अवसर मिल जाए तो वो भी ये उपदेश दे रहे होते की -
"हे पार्थ ! मुझे नहीं पहचाना!
मास्टारो में मै प्राईमरी का मास्टर हूँ !
रोगों में मै गुप्त रोग हूँ !
घोटालो में मै 2G और कोलगेट हूँ !
वायरस फैलाने वाले देशों में मै चीन हूँ!"
पर क्योंकि आज कल ऐसा हो नहीं सकता है इसलिये मेरे फलाने मित्र खुद को लेके इसी तरह के खयाली पुलाओ पका के और खुद ही खाके सो जाते हैं।
चूँकि वो मेरे मित्र हैं इसलिये मैंने उनको एक बार इशारों-इशारों में समझाया भी कि ,"ज़्यादा विशेष बनने की कोशिश न करें क्योकिं दुनियां में हर कोई विशेष बनने के लिए मरा जा रहा है।इसलिए इन विशेष बनने वालों की भीड़ में यदि आप सामान्य बने रहें तो सबसे ज़्यादा यूनीक आप ही हो जायेंगे।"
लेकिन वो इमेज़ ही क्या जो किसी के समझाने से उनके ऊपर से उतर जाए। वो तो उन्हें अपने साथ ऊपर लेके जाएगी।
●दीपक शर्मा 'सार्थक'
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