'मोहोम्मद' का मतलब 'मोहब्बत' ही है
बस खलिश को दिलों से हटाओ जरा !

सारे शिकवे गिले पल में मिट जाएँगे 
एक दूजे को दिल में बसाओ जरा !

सिर्फ इंसानियत का ही पैगाम है
सारे मज़हब की पुस्कत उठाओ ज़रा !

नफ़रतों की जलन पल में बुझ जाएगी
प्यार में एक डुबकी लगाओ ज़रा !

साजिशन स्वार्थी तुमको लड़वा रहे 
आँख से अपने पर्दा हटाओ ज़रा !

इक सदी दुश्मनी में गुज़र ही गई
दोस्ती का दिया अब जलाओ ज़रा !

साथ मिलके रहें मुल्क आबाद हो
ऐसी उम्मीद दिल में जगाओ ज़रा !

मज़हबी धर्मिक सब सहिष्णु बने 
एक ही सुर में बस गुनगुनाओ ज़रा !


                     ●दीपक शर्मा 'सार्थक'



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