उसके खिलाफ़ एक भी गवाह न मिला
सारे गुनाह करके वो बेदाग हो गया

कानून तोड़ के मरोड़ के बदल दिया
था वो कुसूरवार मगर पाक़ हो गया

मुज़रिम भी था वही, वही सफ़ेदपोश भी
हर बार की तरह ये इत्तफ़ाक हो गया 

अपने हुकूक के लिए जो लड़ रहा था वो
ताउम्र लड़ते ही सुपुर्द-ए-खाक़ हो गया

मुंसिफ़ भी बिक गया अदालतें भी बिक गई
इन्साफ मिलना अब बड़ा मज़ाक हो गया

मुर्दा अवाम डर से बेज़ुबान हो गई
जिसने किया सवाल जल के राख हो गया

           ●दीपक शर्मा 'सार्थक'







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