अंध दूरदर्शी
दास राज! मेरे पिता महाराज शान्तनु आप की बेटी देवी सत्यवती से प्रेम करते हैं।फिर आप को उनके विवाह में क्या आपत्ति है? मुझे आपत्ति नहीं है राजकुमार देववृत ! परन्तु इस विवाह से मेरी पुत्री को क्या प्राप्त होगा? अरे दास राज! वो महान कुरु वंश की महारानी बन जाएंगी।और क्या चाहिए ? पर राजकुमार थोडा और आगे की सोचो! मेरी पुत्री सत्यवती का पुत्र कभी राजा नहीं बन पायेगा।क्योंकि महाराज शान्तनु के बाद राजा तो आप बनेंगे। तो ठीक है दास राज ! मैं ये प्रण लेता हूँ कि मै राजा नहीं बनुंगा। देवी सत्यवती से उत्पन्न पुत्र ही राजा बनेगा। वो तो ठीक है राजकुमार लेकिन थोड़ा और आगे की सोचो।आप तो राजा नहीं बनेंगे लेकिन आगे चलके आप के पुत्र राज्य पर अपना दावा ठोक देंगे। फिर मेरी पुत्री के पुत्रों का क्या होगा? अगर ऐसा है तो मैं प्रण करता हूँ की मै आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करूंगा। कभी विवाह नहीं करूंगा।और संतानहीन रहूँगा। उक्त घटनाक्रम महाभारत में भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से प्रचलित है।यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि इस घटनाक्रम में भीष्म के महान त्याग और उनकी अखंड प्रतिज्ञा केंद्र में रहती है और सत्यवती के दो कौड़ी के ...