नव नूतन नभ नयनो में बसे नित नवयोदय निर्मित हो नया निखरे जो थे बिखरे सपने नववर्ष में लें संकल्प नया ! नव चेतन नित संवेदन नव नव चिंतन भी निर्गत हो नया निश्छल नीयत नव निर्मल मन नव उद्विकास हो नित्य नया ! नव स्वप्न नयन में बस जाएं निष्काम हृदय, नवयुग हो नया नर नारायण में निहित रहे निज राष्ट्र का हो उत्थान नया ! नव नीति निरंतर विकसित हो न्यायोचित हो और न्याय नया नैतिकता निर्मित हो सबमें नववर्ष में हो सब नया-नया ! ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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मेरी पीड़ा क्या समझोगे कितना भी कर लें हम ज्ञापित सारी दुनियाँ ये जानती है हम विस्थापित तुम स्थापित उर भी घायल पुर भी घायल निज अन्तरमन भी है शापित सारी सत्ता कर में उनके हम संतापित वो सत्यापित निर्जीव निरंकुश नाकाबिल निर्दोषो पर होते शासित निर्विग्न करो सब नाजायज हम निर्वासित तुम अभिलाषित तथ्यों पर ध्यान नहीं देते निर्णय सारे हैं अनुमानित निज दोष मढ़ो मेरे ऊपर हम अपमानित तूम सम्मानित ● दीपक शर्मा 'सार्थक'
तू ग़ुमान कर तू जवान है !
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तू ग़ुमान कर तू जवान है.. तेरे हाथ में वक्त का तीर है तेरे हाथ में ही कमान है संजीदगी से जो सोच ले क़दमों तले ये जहान है तू ग़ुमान कर तू जवान है.. मत कर फिकर हो जा निडर तेरी मुस्किलें आसान है नई चुन डगर कुछ कर गुज़र रच दे नया जो विधान है तू ग़ुमान कर तू जवान है.. चाहे जीत हो चाहे हार हो तू हर दशा में समान है बस कर्म कर न अधर्म कर गीता में कृष्ण का ज्ञान है तू ग़ुमान कर तू जवान है.. जो भटक गया तो अटक गया बिन लक्ष्य के बेजान है मंज़िल पे तेरी हो नज़र फिर हर तरफ उत्थान है तू ग़ुमान कर तू जवान है.. तेरी शक्ति है तेरा अात्मबल क्यों बेखबर बेध्यान है ये चुनौतियां ढ़ह जाएंगी अंदर तेरे तूफान है तू ग़ुमान कर तू जवान है.. ● दीपक शर्मा 'सार्थक'
बिचारे दुर्योधन!
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निवस्त्र होते देखना तो पूरी सभा चाहती है बस कोई दुर्योधन बोल देता है ! चीरहरण तो पूरी सभा करना चाहती है बस कोई दुसाशन कर देता है ! बिचारे दुर्योधन ! काम पिपासा ज़ाहिर करके बदनाम हो जाते हैं और ये सभ्य समाज ! अपना दामन बचाता गैरों पे इल्ज़ाम लगाता अन्दर से आनंदित होकर आत्म मैथुन करता रहता है ! ●दीपक शर्मा 'सार्थक'
सुई -कपड़ा
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इक सुई ने मन मे ठान लिया वो एक मिशाल बनायेगी दो अलग तरह के कपडों को वो एक बना कर मानेगी इस ज़िद के वशीभूत होकर भाईचारे का धागा लेकर सुई महासमर में कूद पड़ी मन कड़ा किए निष्ठुर होकर दोनो कपडों में चुभ चुभ कर धागे से दोनो को सिलकर वो एक जगह पर ले आई दोनो कपडों को घायल कर कपड़े जुड़ गए मगर सुई को इक बात बहुत ही चुभने लगी ये भरत मिलाप अधूरा था गिरहें कपड़ो में दिखने लगी जो साथ नहीं रहने वाले यदि उनको साथ में लाओगे परिणाम बुरा होगा उसका सुई की तरह पछताओगे ● दीपक शर्मा 'सार्थक'