कितना भी कर लें हम ज्ञापित
सारी दुनियाँ ये जानती है
हम विस्थापित तुम स्थापित
उर भी घायल पुर भी घायल
निज अन्तरमन भी है शापित
सारी सत्ता कर में उनके
हम संतापित वो सत्यापित
निर्जीव निरंकुश नाकाबिल
निर्दोषो पर होते शासित
निर्विग्न करो सब नाजायज
हम निर्वासित तुम अभिलाषित
तथ्यों पर ध्यान नहीं देते
निर्णय सारे हैं अनुमानित
निज दोष मढ़ो मेरे ऊपर
हम अपमानित तूम सम्मानित
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
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