थोड़ा सा फरेब
थोड़ा फ़रेब खुद से ही करने के बदौलत
एहसास-ए-ज़िन्दगी कि ज़मीं बरक़रार है !
उकता गया हूँ अब तो मोहोब्बत से इस क़दर
दिल को सुकून का ही फ़कत इन्तज़ार है !
कुदरत बदल गई है खुदा भी बदल गया
खुदपे ही अब कहाँ मुझे भी ऐतबार है !
जो प्यार का व्यापार करें उनको ढूँढिये
मेरा तो सिर्फ दर्द का ही कारोबार है !
जो हो रहा, हो जाए ,अब हमें फ़िकर नहीं
हर चीज़ थामने का कहाँ इख्तियार है !
सारा जहान् खुद को बेक़सूर है कहता
उसकी नज़र में गैर ही क़ुसूरवार है !
सुख-दुःख में जो शरीक़ था गर्दिश के दौर में
शोहोरत मिली नहीं की वो ही दरकिनार है !
दुनियाँ उलझ के रह गई मज़हब के खेल में
लेकिन खुदा तो प्यार का ही तलबगार है !
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
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