बिचारे दुर्योधन!

निवस्त्र होते देखना तो
पूरी सभा चाहती है
बस कोई दुर्योधन बोल देता है !

चीरहरण तो पूरी सभा
करना चाहती है
बस कोई दुसाशन कर देता है !

बिचारे दुर्योधन !
काम पिपासा ज़ाहिर करके
बदनाम हो जाते हैं

और ये सभ्य समाज !
अपना दामन बचाता 
गैरों पे  इल्ज़ाम लगाता
अन्दर से आनंदित होकर
आत्म मैथुन करता रहता है !

          ●दीपक शर्मा 'सार्थक'

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