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नासमझ थे वो जो हरदम हुक्म देने में लगे थे और हम बस प्यार से ही अर्ज़ करते रह गये गलतफ़ैमी थी की इक दिन हम समझ लेंगे उन्हे जितना सुलझाया उन्हे हम खुद उलझ के रह गए हमको भी अफ़सोस है ...
स्तब्ध कण्ठ बाधित धड़कन उद्विग्न हृदय व्याकुल तन मन काया किंकर्तव्यविमूढ़ हुई असमंजस में सारा कण-कण मानवता सारी छिन्न-भिन्न समरसता के बाकी न चिन्ह जो थे सुचिता के कर्णध...
मजदूरी का पता नहीं पर मजदूर बदल गये हैं अब ये टाई पहने मजदूर कंधे पर भारी बैग लादे पब्लिक बसों के धक्के खाते टारगेट पूरा करने को भागे कोई पीछे कोई आगे बिचारे ये टाई पहने मज़द...

अबकी बार

अबकी बार बदला नहीं बल्कि बदल दो.. उनकी वहियात सोच बात बात वाली धौंस उनके कायर दोस्त उनका आतंकी जोश अबकी बार हमला नहीं बल्कि हलक़ से खींच लो उनकी गंदी ज़बान उनकी आन बान शान उनक...

संविधान

संविधान ! संविधान ! कैसा है तेरा विधान ! लाईन में सबसे पीछे बैठा जो सबसे नीचे पैरों से कुचला जाए बाकी ना उसमे जान संविधान! संविधान! कैसा है तेरा विधान ! हो चाहे कोई जैसा यदि उसके ...

अवैध खनन

थामे कोई बुनियाद को कितने भी जतन से गिरती ही जा रही है ये अवैध खनन से ! वो लूटते ही जा रहे हम लुट रहे बेबस है वास्ता किसे मेरे अधिकार हनन से ! रस्ता बसन्त देख के वापस चला गया पतझड़ नहीं राज़ी हुआ जाने को चमन से ! वो खून का प्यासा बिछाए जा रहा लाशें हम रस्ता ढूँढे कोई मिल जाए अमन से! खैरात का खा के यहाँ बुज़दिल हुई अवाम उम्मीद क्या करें कोई अब अहले वतन से ! कहने को हैं ज़िन्दा मगर ये कब के मर चुके किस काम की दुनियां है इसे ढक दे कफन से ! बासी परंपराओ की ढकोसले बाजी कुछ भी नया बचा नहीं करने को लगन से ! थोड़ा सा फासला नहीं ख़तम हुआ ताउम्र ना हम बढ़े आगे न ही चला गया उनसे !            ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

पाप चक्र

ये विज्ञान भी इतनी बुरी बला है ...ये आस्था के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है। बिचारे भोले भाले सज्जन टाइप क कमीने व्यक्ति, थोक के भाव में पाप इकट्ठा करके गंगा जी में स्नान करने जा रहे है...