पाप चक्र
ये विज्ञान भी इतनी बुरी बला है ...ये आस्था के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है। बिचारे भोले भाले सज्जन टाइप क कमीने व्यक्ति, थोक के भाव में पाप इकट्ठा करके गंगा जी में स्नान करने जा रहे हैं। उनकी आस्था है की गंगा में रगड़-रगड़ के नहाने से उनके सारे पाप धुल जाएंगे। पर ये मुआ 'विज्ञान' उनकी इस आस्था को छिन्न-भिन्न करने पर लगा है।
बात दरसल ये है कि कुछ आस्था के दुश्मन वैज्ञानिक 'पाप चक्र' का नया सगुफ्ता लेकर आ गये हैं। उनके अनुसार पाप का पूरा एक चक्र होता है।
जब लोग गंगा में जाकर स्नान करके अपने पाप धुलते है। तो वो पाप गंगा में घुल जाता है। इस तरह पाप से मलीन गंगा, बहुत देर तक पाप अपने पास नहीं रखती और सारा का सारा पाप ले जाकर समुद्र में गिरा देती हैं।
समुद्र भी पाप को बहुत देर अपने पास नहीं रखता ।उसका सारा पाप पानी से साथ बादलों में चला जाता है।
पाप और पानी से भरे ये बादल, मानसूनी हवाओं के साथ फिर वापस इंसानों की बस्ती में आ जाते हैं। जहाँ आकर ये बादल बरसते हैं और पानी में घुला हुआ ये पाप फसलों में मिल जाता है।
इन तरह फसलों से उत्पन्न अनाज भी पाप युक्त हो जाता है।
ये अनाज फिर इंसानों के द्वारा खाया जाता है और इस तरह चक्र पूरा करके पाप वापस इन्सानो के पास आ जाता है। और पाप चक्र पूरा होता है।
यानी अगर इस नजरिए से देखा जाए तो गंगा स्नान करके कोई व्यक्ति सोचे की वो पाप मुक्त हो जायेगा,तो ये सम्भव नहीं है। शायद इसीलिए संत रैदास ने कहा था 'मन चंगा तो कथौते में गंगा'।
हो ना हो वो ज़रूर इस पाप चक्र के बारे में जान गये थे। अब फैसला आप के हाथ में है।
● दीपक शर्मा 'सार्थक'
Comments
Post a Comment