महिला/ पुरुष
महिला - मै तो सबरीमाला मन्दिर मे ज़रूर जाऊंगी !
पुरुष - अरे ! लेकिन उस मन्दिर की ऐसी परम्परा है कि उसमे महिलाएं प्रवेश नही करती हैं
महिला - नहीं, मै तो ज़रुर अन्दर घुसुंगी...अगर मुझे रोकोगे तो ये समानता के अधिकारो का हनन है !
पुरुष - ये बात गलत है..मै मनता हूँ बहुत जगह पुरुष स्त्रियों का शोषण कर रहे हैं लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है..ये मात्र उस मन्दिर से जुड़ी एक आस्था का विषय है। बहुत से मन्दिर ऐसे हैं जहाँ पर ऐसी आस्था है कि वहाँ पुरुष की जगह महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं।
महिला - ये सब कुछ नहीं ..मै तो मन्दिर में ज़रूर घुसुंगी। तुम मुझे दबा नहीं सकते। अब तुम्हारी दादागीरी नहीं चलेगी।
पुरुष- अरे यार बात को समझने की कोशिश तो करो..ये बराबरी या समानता का विषय नहीं बल्कि पूरी तरह धार्मिक आस्था का विषय है।
जैसे नवरात्रि के बाद नौ कन्याओं की पुजा की जाती है..उनके पैर पूजे जाते है। अब अगर हम पुरुष भी बराबरी और समानता के नाम पर ये चिल्लाने लगे कि हमारी भी पूजा की जाये तो ये कितना गलत होगा।
महिला - बकवास मत करो ! ये सब उल्टी सीधी कहानी सुना कर तुम हम महिलाओं के बराबरी के अधिकार का हनन नहीं कर सकते। जो-जो तुम पुरुष करोगे ..हम महिलायें भी वो सब करेंगी। हम मन्दिर में ज़रूर घुसेन्गे।
पुरुष- क्या हर काम जो पुरुष करता वही काम या वैसा ही व्यवहार स्त्री करने लगे..तब इसे ही समानता समझा जायेगा ?
महिला - हाँ बिल्कुल ! ..हर वो काम जो पुरुष करता है हम स्त्री भी वही करेंगे। तभी समानता आयेगी।
पुरुष ( गुस्से में) - अच्छा ! यानी हम पुरुष अगर खड़े-खड़े शुशू करते हैं...तो अब तुम भी खड़े-खड़े ही करना, तब ही समानता आयेगी !
- दीपक शर्मा 'सार्थक'
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