चहरे

उफ्फ़!
ये तरह-तरह के चहरे !
हर चहरा, चहरो से जुदा है
हर चहरे की अलग अदा है
हर चहरे के राज हैं गहरे
उफ्फ !
ये तरह-तरह के चहरे !

कुछ चहरे, चहरो को छलते
कुछ चहरे हैं रंग बदलते
कुछ चहरो पर लगे है चहरे
उफ्फ !
ये तरह-तरह के चहरे !

सब चहरो की हँसी है जाली
सब चहरे अन्दर से खाली
जिस चहरे पे नज़र ये ठहरे
उफ्फ़!
ये तरह-तरह के चहरे !

कोई ख़ुद को छुपाये कितना
चहरे से नक़ाब है हटना
कोई कितने लगाये पहरे
उफ्फ !
ये तरह-तरह के चहरे !

       - दीपक शर्मा 'सार्थक'

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