अबकी बार

अबकी बार बदला नहीं
बल्कि बदल दो..
उनकी वहियात सोच
बात बात वाली धौंस
उनके कायर दोस्त
उनका आतंकी जोश

अबकी बार हमला नहीं
बल्कि हलक़ से खींच लो
उनकी गंदी ज़बान
उनकी आन बान शान
उनका खोखला गुमान
उनका बेसुरा तान

अबकी बार बातचीत नहीं
बल्कि खाल खींच लो
ताकि फिर न हो कोई हमला
बज जाए उनका तबला
बिधवा न हो कोई अबला
आसमां न हो धुंधला

      ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

Comments

Popular posts from this blog

एक दृष्टि में नेहरू

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

क्या जानोगे !