संविधान ! संविधान ! कैसा है तेरा विधान ! लाईन में सबसे पीछे बैठा जो सबसे नीचे पैरों से कुचला जाए बाकी ना उसमे जान संविधान! संविधान! कैसा है तेरा विधान ! हो चाहे कोई जैसा यदि उसके ...
थामे कोई बुनियाद को कितने भी जतन से गिरती ही जा रही है ये अवैध खनन से ! वो लूटते ही जा रहे हम लुट रहे बेबस है वास्ता किसे मेरे अधिकार हनन से ! रस्ता बसन्त देख के वापस चला गया पतझड़ नहीं राज़ी हुआ जाने को चमन से ! वो खून का प्यासा बिछाए जा रहा लाशें हम रस्ता ढूँढे कोई मिल जाए अमन से! खैरात का खा के यहाँ बुज़दिल हुई अवाम उम्मीद क्या करें कोई अब अहले वतन से ! कहने को हैं ज़िन्दा मगर ये कब के मर चुके किस काम की दुनियां है इसे ढक दे कफन से ! बासी परंपराओ की ढकोसले बाजी कुछ भी नया बचा नहीं करने को लगन से ! थोड़ा सा फासला नहीं ख़तम हुआ ताउम्र ना हम बढ़े आगे न ही चला गया उनसे ! ● दीपक शर्मा 'सार्थक'
ये विज्ञान भी इतनी बुरी बला है ...ये आस्था के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है। बिचारे भोले भाले सज्जन टाइप क कमीने व्यक्ति, थोक के भाव में पाप इकट्ठा करके गंगा जी में स्नान करने जा रहे है...
उफ्फ़! ये तरह-तरह के चहरे ! हर चहरा, चहरो से जुदा है हर चहरे की अलग अदा है हर चहरे के राज हैं गहरे उफ्फ ! ये तरह-तरह के चहरे ! कुछ चहरे, चहरो को छलते कुछ चहरे हैं रंग बदलते कुछ चहरो पर ल...
महिला - मै तो सबरीमाला मन्दिर मे ज़रूर जाऊंगी ! पुरुष - अरे ! लेकिन उस मन्दिर की ऐसी परम्परा है कि उसमे महिलाएं प्रवेश नही करती हैं महिला - नहीं, मै तो ज़रुर अन्दर घुसुंगी...अगर मुझे र...
फिर साल बीतने वाला है एक दिन हम भी बीते कल का हिस्सा बन कर रह जाएंगे बीते हुए समय का एक किस्सा बनकर रह जाएंगे जी लो इस पल को जी भर के फिर साल बीतने वाला है ! ये बीतने वाला हर लम्हा ...
ये नुमाइश जो जीने की करते हैं वो कोई पूछे भी उनसे वो ज़िन्दा है क्या ! है धुरी से अलग न ज़मीं न फलक देखो जिस ओर भी बेखुदी की झलक ज़िन्दगी जब तलक करते रहते हैं क्या ! कोई पूछे भी उन...