रुक जा, जाने का नाम न ले न विरक्त गृहस्त से होना तू ! उगते रवि सा हो प्रशस्त सदा वैराग्य में अस्त न होना तू ! निष्काम ही कर्म तू करता जा बस लोभ में ग्रस्त न होना तू ! संसार के कुछ उद्...
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वो भगवान बन गया !
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मिट्टी के घर को छोड़ के दौलत की चाह में बेजान पत्थरों का इक मकान बन गया ! दामन ज़रासा क्या फटा आलम तो देखिए अपनो की महेफिलों में भी अंजान बन गया ! कर्जे की बली चढ़ गया ऐसा किसान हूँ उतरे न जो कभी भी वो लगान बन गया ! हीरा तलाशने में कुछ यूँ हुए घायल वीरान कोयले सी कोई खान बन गया ! ऐसे तो शराफत के मुखौटे से हूँ ढ़का मौका ज़रा मिला नही शैतान बन गया ! दिल की कभी दिमाग़ की बातों में आके मैं तलवार दो सम्भालती मियान बन गया ! बातों के तीर मार के घायल किया सबको बनने चला था ढाल,पर कमान बन गया ! मेरी समझ से है परे इस देश का विधान हमने चुना था नेता वो भगवान बन गया ! © दीपक शर्मा 'सार्थक'