आॅनलाइन

आजकल हर किसी के मुह से एक शब्द जो बार-बार सुनने को मिलता है..वो है 'आॅनलाइन'
अगर कहा जाए कि आॅनलाइन होने का अर्थ ..जीवित होना है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। और वो भी दिन दूर नहीं जब 'आॅफलाइन' होने का मतलब 'मृत्यु होना' हो जाएगा। यानि अगर आज से पचास वर्ष बाद  किसी महापुरुष  का जीवन चरित्र  कुछ इस तरह लिखा जाएगा-
" देश के महान नेताओ में से एक 'फलाने जी' 26 सितम्बर सन 2017 को आॅनलाइन(पैदा) हुए तथा 7 दिसम्बर सन 2091 को हृदयाखात से वो आॅफलाइन हो गए।इस पूरे आॅनलाइन काल (जीवन काल)के दौरान फलाने जी ने 50000 जी.बी. डेटा का इस्तेमाल किया। उन्होने समाज में व्याप्त कई कूरीतियों जैसे-
आपसी मेल जोल  और ऐसी ही अनेको समस्या का डट कर सामना किया ।उन्होंने लोगों को प्रोत्साहित किया कि वे आमने सामने एक जगह इकट्ठे होकर मुह से बात करने जैसी सामाजिक  बुराई से दूर रहें..और हमेशा आॅॅनलाइन ही बात करें।
फलाने जी पहले ऐसे महापुरूष हुए जिन्होंने बाज़ार जाकर खरीदारी कहने के स्थान पर हमेशा आॅनलाइन शाॅपिंग की। क्योंकि उनका मानना था कि बाज़ार में शाॅपिंग करने से लोगो को एक दूसरे से, मुह से बातचीत करने का ख़तरा  बढ़ जाएगा।
बच्चों के डिजिटलीकरण को लेकर फलाने जी ने खासा प्रयास किए।उनका मानना था कि जो बच्चे माँ के गर्भ से आनलाइन(जन्म)होते हैं उनमें कई तरह के मानवीय अवगुण पाए जाते हैं। समाज को 'टेस्ट ट्यूब बेबी' की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।टेस्टट्यूब बच्चे आनलाइन होने से ही डिजिटल होते हैं। ऐसे बच्चों पर थोड़ा सा प्रयास करके ही उनका मशीनीकरण किया जा सकता है। बस बच्चों को जितनी जल्दी हो सके ..उन्हें आॅनलाइन एक लेटेस्ट एन्ड्वाइड फोन मगा कर देना चाहिए.. तभी 100 % डिजिटिलीकरण संभव होगा।
व्लू ह्वेल गेम तो पहले से ही उपलब्ध था..पर बच्चों की आवश्यक्ता को देखते हुए फलाने जी ने 'रेड ह्वेल, ग्रीन ह्वेल, यलो ह्वेल जैसे कई गेम का अविष्कार किया। इसके लिए उन्हें 'इंटरनेट रत्न' पुरस्कार से आनलाइन सम्मानित किया गया।
फलाने जी ने आॅफलाइन होने( मरने) से पहले एक शोध किया। इसमें उन्होंने बतलाया कि "दुनियां में अधिकतर समस्याओं का मुख्य कारण 'मुह' है। इसी मुह से बोल-बोल कर लोग अपना समय बर्बाद करते हैं। ख़शी मिलने पर इसी मुह पर ही मुस्कुराहट आती है, उदास होने पर ये मुह ही है जो लटक जाता है।और ये सब पिछड़ेपन की निशानी है। इसका समाधान यही है कि लोग मुह की जगह 'अंगूठे' से बात करें..यानि आॅनलाइन टाइपिंग करते हुए बात करें। जब ख़ुश हो तो 'फीलिंग हैप्पी' लिखकर एक मुस्कुराता हुआ इमोजी टाइप कर दें। जब उदास हो तो फीलिंग 'सैड टाइप' करके एक उदास इमोजी बना दें। इन प्रयासों से धीरे-धीरे मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो जाऐंगी मनुष्य का डिजिटल संसकरण  सामने आएगा।"
फलाने जी जैसे महापुरुष को दुनियां हमेशा याद रखेगी। आज उनके आॅनलाइन दिवस( जन्मदिवस) पर उनको सी.पी.यू.(हृदय) से उनका नमन करते हैं।
ख़ैर ! आज सन 2017 में ये भविष्यवाणी करना कि सन 2091 में क्या होगा ? ग़लत हो सकता है। पर इतना तो मुझे लगता ही है कि 'शंकराचार्य' ने कुछ सोच कर ही कहा होगा -
"ब्रह्म सतं...जगत मिथ्या !"
यानि केवल ब्रह्म सत्य है जबकी ये संसार (जगत) माया है ..मित्था है। अब इससे ज्यादा प्रमाण क्या चाहिए कि आज के बच्चे, गेम की दुनियां (मिथ्या दुनियां) और असली दुनियां में अंतर नहीं कर पा रहे हैं।
शायद इसीलीए मो. साहब ने इस्लाम में ऐसी झूठी और फ़ेक वस्तुओ को हराम बताया है!
शायद यही तो इन्सान की मशीन बनने की शुरुआत है!

                  © दीपक शर्मा 'सार्थक'

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