रुक जा, जाने का नाम न ले
न विरक्त गृहस्त से होना तू !
उगते रवि सा हो प्रशस्त सदा
वैराग्य में अस्त न होना तू !
निष्काम ही कर्म तू करता जा
बस लोभ में ग्रस्त न होना तू !
संसार के कुछ उद्धार में कर
अपने में ही व्यस्त न होना तू !
जीवन संघर्ष से मुह न छुपा
मझधार में पस्त न होना तू !
दुनियां की समझ से बाहर हो
इतना भी अव्यक्त न होना तू !
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
Comments
Post a Comment