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Showing posts from February, 2022

ब्लादिमीर जेलेंस्की के नाम खुला खत

प्रिय  ब्लादिमीर जेलेंस्की, यूक्रेन के राष्ट्रपति  महोदय,           आज से पन्द्रह दिन पहले विश्व के जिस हिस्से से मैं आता हूं.. वहाँ शायद ही आपको कोई पहचानता होगा। पर आज की तारीख में आपकी चर्चा लगभग हर व्यक्ति के ज़बान पर है। और उसपर भी मजेदार बात ये है कि जिन लोगों की बौध्दिक समझ ऐसी है कि वो अपने ही देश के भौगोलिक हिस्से यानी पूर्वोत्तर के राज्यों के नागरिकों को नेपाली..चीनी..कह कर बुलाते हैं।अब वो लोग भी चंद कूड़ा न्यूज चैनलों को देख कर आपको और पुत्तनवा को सलाह दे रहे हैं। आज उसी क्रम में मैं भी आपको कुछ सलाह देना चाहता हूं। महोदय, मैंने आपके बारे में सुना है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति बनने से पहले आप एक कॉमेडियन एक्टर थे। शायद आपकी कॉमेडी से खुश होकर यूक्रेन के नागरिकों ने आपको वहाँ का राष्ट्रपति बना दिया होगा, जिसकी कीमत आज वो चुका रहे हैं। केवल शेखी बघारने और तरह-तरह के वीडियो डालकर अपनी इमेज के चक्कर में आज आपने लाखों मासूम यूक्रेनियन को मरने और मारने पर मजबूर कर दिया है। वर्तमान स्थिति को देख कर साफ़ पता चलता है कि आपके पास कोई कारगर रणनीति ...

चुनावकर्मी की दुर्दशा

चुनाव कर्मियों के लिए बेहतर व्यवस्था की तो खैर पहले ही मुझे उम्मीद नहीं थी..लेकिन ये भी नहीं पता था निर्वाचन के ठेकेदार अधिकारी चुनाव कर्मी को कृमि (कीड़ा) ही समझते हैं। निर्वाचन के एक दिन पहले निर्वाचन सामग्री को कलेक्ट करने और चुनाव कर्मी को पोलिंग बूथ तक ले जाने वाले वाहनों की व्यवस्था को दूर से ही देख कर पता चल रहा था कि निर्वाचन अधिकारी महोदय व्यवस्था को लेकर कितने असंवेदनशील हैं। हजारों की संख्या में कर्मचारी एक ही गेट से अंदर जा रहा था और उसी गेट से EVM लेकर कर्मचारी वापस भी आ रहे थे। भेंड़ बकरियों की तरह लोग एक दूसरे को कचरते हुए उसी से अंदर बाहर जा रहे थे। कुछ अति उत्साही कर्मचारी बाकायदा दीवार कूद के भी जा रहे थे। एक बस पर पांच पांच बूथ की पोलिंग पार्टी और वहां ड्यूटी पर लगी पुलिस टीम भी जा रही थी। अधिकारियों की नजर में वे बस नहीं जैसे पुष्पक विमान था..जिसके बारे में मशहूर है कि उसमें चाहे जितने लोग बैठे एक सीट हमेशा खाली रहती थी। एक बात जो मुझे सबसे ज्यादा खलती है वो ये है कि कर्मचारी भी जानते हैं कि वो इस चुनाव में बहुत परेशान होंगे..लेकिन फिर भी इस परेशानी को सहजता से स्वी...
कयासों के भरोसे हो या अंदाज़े लगाते हो  किसी भी बात की तह तक तुम्हें जाना नहीं आता ! कोई दिल खोल के रख दे, फरक पड़ता नहीं तुमको  समझ कर नासमझ हो या समझना ही नहीं आता ! जहाँ देखो, बिखर जाते हो तिनके की तरह ढह कर  फिसल कर गिर गए हो या संभलना ही नहीं आता ! कोई जिंदादिली दिल में नहीं ऐसा भी क्या जीना  धड़कता ही नहीं दिल या धड़कना ही नहीं आता ! बहुत मजबूत बनते हो मगर कमजोर हो एकदम  गरजते खूब हो लेकिन बरसना ही नहीं आता ! जो दिल पे बोझ हो कोई, करो हल्का उसे कह कर  भरे बैठे हो सीने में छलकना ही नहीं आता !                             ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

शक्ति वंदना

शक्ति का स्वरुप, सार है सकल समष्टि का  सजल सदा वो प्रेम में सरल भी है सशक्त है  सात सुर इसी के उर में साज संग सरस्वती  शस्त्र जो उठा ले सारी श्रृष्टि ही निशस्त्र है  सूक्ष्म है कभी, कभी समग्रता स्वभाव में कभी-कभी वो कुछ नहीं कभी-कभी समस्त है  सहेजती है स्वप्न को वो शोक सारे त्याग के  सहज ही सारे श्रम करे कभी न वो निःशक्त है  समेट ले सहर्ष सब दुःखों को ऐसी संगिनी  है श्रोत वात्सल्य का वो भाव से सहस्त्र है  शत्रु शीश काट रक्त से धरा को सींच दे  दुष्ट दुर्जनों को जो डरा दे ऐसा अस्त्र है  सुबोधनी सुयोग्यनी सुसंगठित संजीवनी  सुसज्जितनी सुलक्षणी सुलोचनी सुभक्त है  स्त्रियों से ही प्रकाशमय हुई वसुंधरा  स्त्रियों बिना समाज शक्तिहीन अस्त है                   ©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'

चेतना

सती प्रथा का भारतीय समाज में बोलबाला था। कब्र में पैर लटकाए बूढे अपनी काम पिपासा को शांत करने लिये कम उम्र की लड़कियों से शादी करके जल्दी ही मर जाते थे। उनके साथ उन विधवाओं को भी जबरदस्ती जला दिया जाता था। अंग्रेज सरकार भी इसे हिन्दुओ का व्यक्तिगत मामाला समझ कर बहुत दिन तक नजरअंदाज करती रही। जब राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरोध में आवाज उठाई तो उस समय के हिन्दू समाज में उनकी बहुत बुराई हुई। राज राममोहन राय के विरोध में 1928 ई में राजा राधाकांत देव ने "धर्म सभा" की स्थापना करके "शब्दकल्पद्रूम" के संपादन के माध्यम से सती प्रथा का पुरजोर समर्थन किया। इस बात को  इस तरह पेश किया गया कि सती प्रथा का विरोध करना..हिन्दू धर्म का विरोध हो गया। अचरज की बात ये थी कि उनके इस अभियान के समर्थन में महिलाएं भी शामिल थी..जबकि सती प्रथा से उनको ही मुक्ति मिलती। लेकिन धर्म की अफीम ही ऐसी है जो कुछ भी करा सकती है। हाँ इतना जरूर है, नशा चाहे जितना तगड़ा क्यों न हो..एक न एक दिन उतरता जरूर है। राजा राममोहन राय के प्रति विरोध का आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके खुद के पिता ने भी उ...

हिजाब

हिटलर का यहूदियों के ऊपर आतंक अपने चरम पर था। जर्मन में यहूदियों की स्थिति दिन पर दिन बदतर होती जा रही थी। यहूदियों को अलग बस्तियों में गंदगी और महामारी के बीच रहने पर मजबूर कर दिया गया था। हिटलर के आदेश पर हर यहूदी के घर के बाहर की दीवार पर एक विशेष प्रकार का निशान बना दिया गया था। ताकि देखने वाले को दूर से ही ये पता चल जाए कि एक यहूदी का घर है। यहां तक जर्मनी के स्कूलो में भी बाकायदा स्लेबस में यहूदियों को लेकर ये पढ़ाया जाने लगा था कि यहूदी बहुत लालची और मोटे होते हैं उनकी नस्ल सबसे खराब नस्ल होती है। और उनकी नाक उल्टा सेवेन( 7) के जैसी होती है। इन सब नकारात्मक प्रचार का दुष्प्रभाव आम जनमानस के दिल दिमाग पर इस तरह फैला की वहाँ के लोगों को ये सब जो कुछ यहूदियों के बारे मे कहा जाता था..वो सब सच लगने लगा। पर इससे भी बुरा ये था कि यहूदियों पर इतना अत्याचार हुआ कि उनको भी इस दुष्प्रचार पर विश्वास होने लगा। उन्हें भी लगने लगा कि जरूर उनकी नस्ल सबसे खराब नस्ल है...उनको भी लगने लगा कि शायद उनकी नाक उल्टा सेवन की जैसी ही है। कुछ यही हाल किसी समय भारत में रैडिकल जातिवादी विचारों का भी था। ब्र...

ऐसा देश है मेरा भाग - 6

आज शोक मनाने का दिन है। लेकिन भारतीय संगीत के प्राण तो कब के निकल गए थे, आज तो लता मंगेशकर के रूप में उसका शरीर नष्ट हुआ है। भारत शुरू से ही एक संगीत प्रधान देश रहा है। यहां तक पूरा एक वेद जिसे हम सामवेद के नाम से जानते हैं..वो पूरा वेद ही गीत गायन को समर्पित है। और वेदों में सबसे छोटा वेद होने के बावजूद सामवेद का महत्व इससे समझा जा सकता है कि गीता में कृष्ण बोलते हैं, "वेदानां सामवेदोऽस्मि" यानी वेदों में मैं सामवेद हूं। कृष्ण के हाथ में बांसुरी भी उनके संगीत प्रेम को दर्शाती है।इसी तरह भारतीय ग्रंथो में लगभग 200 के ऊपर रागों का उल्लेख भी मिलता है।  फिर आज के समय ऐसा क्या हुआ है कि भारतीय संगीत इस वक्त अपने निम्न स्तर को छू रहा है। इसका मुख्य कारण मुझे जो समझ में आ रहा है वो ये है कि आधुनिक पीढ़ी की संगीत की समझ दिन पर दिन घटती जा रही है। और इसके भी पीछे का कारण ये है कि जैसे जैसे भारतीय, पाश्चात्य सभ्यता के नजदीक आते जा रहे हैं वैसे ही उनकी भारतीय संगीत के प्रति रुचि भी कम होती जा रही है। ये दौर पाश्चात्य रैप संगीत का है। और मेरी नज़र में रैप और कुछ नहीं बस संगीत का रेप भर ...

बजट

सबसे पहले तो आप सभी मध्यमवर्गीय लोगों को बजट में हीरे के सस्ते होने की हार्दिक शुभकामनाएं। अब तनिष्क का वो ऐड याद करिए जिसमें बताया जाता है, " हीरा है सदा के लिए!" और मनुष्यों (खास कर मध्यमवर्गीय मनुष्य)के बारे में तो सबको पता ही है शरीर नश्वर है। एक दिन मिट जाना है।इसको ही ध्यान में रखते हुए सरकार ने हीरे पर से कस्टम ड्यूटी घटा ली है ताकि हीरा सस्ता हो जाए। और हर कोई इसे खरीद सके। वैसे तो इस बार के बजट के बारे में ज्यादा चर्चा करने जैसा कुछ नहीं है। इसमें 25 साल आगे का टार्गेट है। एक खूबसूरत सा अनुमान है। और मेरी नजर में अनुमान एक दार्शनिक लिफ्फेबाजी है, जिसे पढ़े लिखे अर्थशास्त्री अपने अपने शब्दों में गढ़ते हैं। ये कुछ वैसा ही है जैसे किसी शर्मीले युवक द्वारा किसी इठलाती बलखाती खूबसूरत बाला के उसकी तरफ मुस्कराते देख कर ये अनुमान लगा लेना कि वो उससे प्रेम करती है। परंतु इजहार करने पर उसका जवाब ना में होता है। इसलिए अनुमान को बस अनुमान ही समझे..हनुमान नहीं, जो आपके सारे कष्ट हर लेंगे।  ये बजट उद्योगपतियों के किये खुशियो की बहार लेकर आया है।उत्पादन के क्षेत्र में लगी नई कंपनिय...