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Showing posts from May, 2020

अंध दूरदर्शी

दास राज! मेरे पिता महाराज शान्तनु आप की बेटी देवी सत्यवती से प्रेम करते हैं।फिर आप को उनके विवाह में क्या आपत्ति है? मुझे आपत्ति नहीं है राजकुमार देववृत ! परन्तु इस विवाह से मेरी पुत्री को क्या प्राप्त होगा? अरे दास राज! वो महान कुरु वंश की महारानी बन जाएंगी।और क्या चाहिए ? पर राजकुमार थोडा और आगे की सोचो! मेरी पुत्री सत्यवती का पुत्र कभी राजा नहीं बन पायेगा।क्योंकि महाराज शान्तनु के बाद राजा तो आप बनेंगे। तो ठीक है दास राज ! मैं ये प्रण लेता हूँ कि मै राजा नहीं बनुंगा। देवी सत्यवती से उत्पन्न पुत्र ही राजा बनेगा। वो तो ठीक है राजकुमार लेकिन थोड़ा और आगे की सोचो।आप तो राजा नहीं बनेंगे लेकिन आगे चलके आप के पुत्र राज्य पर अपना दावा ठोक देंगे। फिर मेरी पुत्री के पुत्रों का क्या होगा? अगर ऐसा है तो मैं प्रण करता हूँ की मै आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करूंगा। कभी विवाह नहीं करूंगा।और संतानहीन रहूँगा। उक्त घटनाक्रम महाभारत में भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से प्रचलित है।यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि इस घटनाक्रम में भीष्म के महान त्याग और उनकी अखंड प्रतिज्ञा केंद्र में रहती है और सत्यवती के दो कौड़ी के ...
'मोहोम्मद' का मतलब 'मोहब्बत' ही है बस खलिश को दिलों से हटाओ जरा ! सारे शिकवे गिले पल में मिट जाएँगे  एक दूजे को दिल में बसाओ जरा ! सिर्फ इंसानियत का ही पैगाम है सारे मज़हब की पुस्कत उठाओ ज़रा ! नफ़रतों की जलन पल में बुझ जाएगी प्यार में एक डुबकी लगाओ ज़रा ! साजिशन स्वार्थी तुमको लड़वा रहे  आँख से अपने पर्दा हटाओ ज़रा ! इक सदी दुश्मनी में गुज़र ही गई दोस्ती का दिया अब जलाओ ज़रा ! साथ मिलके रहें मुल्क आबाद हो ऐसी उम्मीद दिल में जगाओ ज़रा ! मज़हबी धर्मिक सब सहिष्णु बने  एक ही सुर में बस गुनगुनाओ ज़रा !                      ●दीपक शर्मा 'सार्थक'

भक्त या चमचे

मनु महाराज ने किसी जमाने में समाज को चार वर्णों में विभाजित किया था।जिसका खामियाजा आज तक समाज भुगत रहा है।पर इधर कुछ वर्षो से दो मुख्य राजनीतिक दलों के आई.टी.सेल के उकसाने के बदौलत भेड़ चाल चलने वाले भारतीयों(मेरे अनुसार नहीं, भारतेंदु जी के अनुसार) ने खुद को 'भक्त' और 'चमचे' नामक की दो जातियों में स्वत: ही बांट लिया है। जैसे सांख्य दर्शन में मोक्ष के लिए द्वेत मार्ग (यानी दो मार्ग) बतलाया गया है। वैसे ही आज के समय किसी व्यक्ति को उसके विचारों के अनुसार दो ही श्रेणी में रखा जायेगा। और इन श्रेणी के अनुसार अगर किसी के भी विचार सत्ता पक्ष से मेल नहीं खाते हैं तो वो 'चमचा' है और अगर वो सत्ता पक्ष के किसी कार्य की तारीफ कर दे तो वो 'भक्त' है। अब ये स्थिति इतनी विकराल हो गई है की किसी के विचार चाहे जितने मौलिक एवं यथार्थवादी क्यों न हो पर ये भेड़ मानसिकता वाले लोग उन विचारों को भक्त और चमचा नाम के दो कोल्हुओ में जबरस्ती ठेल कर उनका रस निकाल लेते हैं। भारतेंदु जी के ही अनुसार इन भेड़ों को चलाने या कह लीजिए चराने के लिए एक इंजन की आवश्यकता होती है। पर वर्तमान समय म...
उसके खिलाफ़ एक भी गवाह न मिला सारे गुनाह करके वो बेदाग हो गया कानून तोड़ के मरोड़ के बदल दिया था वो कुसूरवार मगर पाक़ हो गया मुज़रिम भी था वही, वही सफ़ेदपोश भी हर बार की तरह ये इत्तफ़ाक हो गया  अपने हुकूक के लिए जो लड़ रहा था वो ताउम्र लड़ते ही सुपुर्द-ए-खाक़ हो गया मुंसिफ़ भी बिक गया अदालतें भी बिक गई इन्साफ मिलना अब बड़ा मज़ाक हो गया मुर्दा अवाम डर से बेज़ुबान हो गई जिसने किया सवाल जल के राख हो गया            ●दीपक शर्मा 'सार्थक'
वो जो फिरते हैं हरदम वजह ढूढ़ते  इक अदत से सकूं की जगह ढूढ़ते वो मोहोब्बत के दरिया में उतरें भी तो ज़िन्दगी बीतती है सतह ढूढ़ते खोजने में रहे प्यार को जब तलक बेबसी से भटकते रहे तब तलक वो समझने में उलझे रहे प्यार को ज़िन्दगी गुजरी पूरी मिली न झलक इल्म उनको मोहोब्बत का होता अगर यूं भटकते न पाने को वो दर बदर प्यार मिल जाता है बेवजह बेसबब ढूढ़ने से नहीं मिलती इसकी डगर प्यार एक खुबसूरत सा अहसास है प्यार में जीत है न कोई हार है प्यार आधर है सारे संसार का इसमे डूबा है जो बस वही पार है           ●दीपक शर्मा 'सार्थक'          

द्रोपदी चरित्र

हा हा हा ! अंधे का पुत्र भी अंधा ! इन शब्दों में अपमान है एक चक्रवर्ती राजा का ! रिस्ते में ससुर का ! विकलांगता का ! घर आए महेमान का ! अपने पति के छोटे भाई का ! साथ में परिवार का ! जाहिल दुर्योधन जैसे लोग बदले में कर देते हैं  इससे भी बड़ा अपमान ! और इतिहास उस बड़े अपराध के आवरण से ढक लेता है ऐसी ही  स्त्रियों के अपराधों को! लेकिन अंधे का पुत्र अंधा  ही बीज है महाभारत का ! परिवार के नाश का ! हो भी क्यूँ न ! वो यज्ञ से पैदा ही हुई थी कुरु वंश के नाश के लिए!           ●दीपक शर्मा 'सार्थक!

इमेज़ का बोझ

मज़ाल है की मेरे फलाने मित्र कभी अकेले मिलने आ जाए..वो जब भी आते हैं तो साथ मे अपनी खुद की बनाई 'इमेज़' को भी अपने कमज़ोर कन्धों पर बैठाल कर साथ में लाते हैं। हालाकि उन्होंने अपनी नज़रो में खुद की जो इमेज़ बना रखी है वो इमेज़ दूसरों की नज़रो में उसी तरह ही है जैसा वो खुद के बारे में सोचते है..ये अभी तक साबित नहीं हुआ है। लेकिन वो हमेशा इसी खुशफ़ैमी में जीते हैं की दूसरो की नजरों में उनकी वही इमेज़ है जैसा वो दिन रात खुद के बारे में सोचते हैं। मेरे ये फलाने मित्र अपनी इमेज़ को इनती गम्भीरता से जीते हैं कि आज तक वो कभी खुद की बनाई इमेज़ के पायजामे से बाहर नहीं आए हैं।पर न जाने क्यों उनको देख के कभी-कभी  लगता है की उन्होंने खुद की इतनी विशालकाय इमेज़ बना रखी है जिसके नीचे दब कर उनका असली वाला मरिल्ला व्यक्तित्व बकरी के बच्चे के जैसा मिमिया रहा हो।पर फिर भी वो गोबर्धन पर्वत की तरह अपनी इमेज़ को लादे मन्द-मन्द दांत निकाल के मुस्कराया(खिसियाया ) करते हैं। उनकी यही तो विशेषता है की वो खुद को इतना विशेष(युनीक) समझने लगे हैं कि कभी-कभी उनको लगता है कि "अपुन इच ही भगवान है !"। बस अफ़सोस इसी ...