इरफ़ान खान

भारतीय सिनेमा के इस थर्ड क्लास दौर में जिसमे आज भी 95% फ़िल्मों में जब हीरो 20 गुन्डो से घिर जाता है, तो एक विलेन आगे दौड़ के आता है। जिसके बाद हीरो उस विलेन को एक मुक्का मारता है और वो 20 फिट दूर जाके गिरता है। जिसके बाद हीरो बाकी विलेन की भी पिटाई करता है।ऐसी फिल्म देखने के बाद दर्शक भी आस्तीने चढ़ाए हुए और शरीर को अनावश्यक फुलाते पिचकाते हुए और साथ में स्टाइल से सिगरेट पीते हुए सिनेमा हाल के बाहर मिल जाते है। यानी थोडा और बुरे लहज़े में कहूँ तो-"जैसे घटिया फिल्मे वैसे ही दर्शक" तो गलत नहीं होगा।
लेकिन इसी दौर में इरफ़ान खान जैसा अभिनेता इस कूड़े के ढ़ेर( हिन्दी सिनेमा) में पड़े एक हीरे के जैसे दूर से ही अपनी अपनी चमक से पहचान में आ जाता है। साधारण कद काठी और बिना बाई सेप और ऐप्स पैक के दुबला-पतला सा एक अभिनेता, कैसे इस मन्दबुद्धि सिनेमा में अपनी जगह बनाता है ये अचरज पैदा कर देता है। उनकी संवाद शैली, उनकी भाव-भंगिमाएं उनका बिना संवाद बोले ही मात्र आंखो से ही अपने अपने किरदार को जी लेने की कला शायद ही और किसी अभिनेता के पास हो। साधरण से दृश्य को अपने अभिनय से असाधारण बना देना कोई इरफ़ान खान से सीखे।'पान सिंह तोमर' हो या 'दा लंच बॉक्स' हो 'पीकू' हो या 'मकबूल' हो, इरफ़ान के अभिनय की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। अपने हर छोटे बड़े रोल को वो अपने दमदार अभिनय से अमर बना देते हैं।
भारत का रियलस्टिक सिनेमा जो की नसीरुद्दीन साह, ओमपूरी जैसे अभिनातओ की बदौलत हासिये पर होने के बाद भी कमर्शियल सिनेमा ( या फूहड़ सिनेमा) की आंधी मे किसी तरह खुद को बचाए हुए था।लेकिन इरफ़ान खान और उनके जैसे कुछ चंद अभिनेताओं के सहारे अचानक मेन स्ट्रीम सिनेमा के समानांतर चलने लगता है। हुल्लड़बाजी ..अश्लील नाच गाना..बे सर पैर का ऐक्शन ये भारतीय हिन्दी सिनेमा की पहचान बन गई थी, पर इस दौर में भी केवल अभिनय के दम पर दर्शको को सिनेमा हाल तक खीच लाने की कला को नवोदित रियलस्टिक सिनेमा करने वाले अभिनेताओं ने इरफ़ान खान से सीखा है। 
अपने छोटे से फिल्मी कैरियर में इरफ़ान खान ने मात्र सिनेमा जगत को ही नहीं बल्कि दर्शको को भी ये सिखाया है की असल में फ़िल्में किसे कहते है। अगर जो कह दिया जाए की 'वो चलते फिरते भरत मुनि द्वारा रचित 'नाट्यशास्त्र' थे !' तो ये गलत नहीं होगा।
आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका विराट अभिनय हमेशा हमारे बीच जिन्दा रहेगा। 

            ● दीपक शर्मा 'सार्थक'

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