भक्ति और तर्क

शान्त चित्त और मस्ती में राम नाम जपता हुआ 'भक्ति' अपनी गली से गुजर ही रहा था की एक हज़ार सवालों वाला मुँह लेके 'तर्क' उसके सामने आ गया। 'तर्क' को देख के 'भक्ति' मुह बिचका के बोला, "आज हमारी गली में कैसे आ गये 'तर्क' भाई ?"
जवाब में तर्क मुस्कुरा के बोला, "मै तर्क हूँ।मुझे कही आने जाने से मनाही नही है भक्ति डीयर!"
"हाँ, ये बात तो अपने बारे में तुमने एकदम सही कही तर्क! जहाँ कही भी कोई भक्तिमय माहौल हो तो उसे बिगाड़ने के लिए तुम दालभात में मूसलचंद बनके आ ही जाते हो।" भक्ति, तर्क की बात पे ठंडी प्रतिक्रिया देते हुए बोला।"
भक्ति की बात सुनकर तर्क उसे समझाते हुए बोला, "डीयर, इसमे बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है।मै तो इन्सान के बुद्धि,विवेक की उपज हूँ।मेरा होना एकदम स्वाभविक है।"
भक्ति बोला,"चलो अगर तुम्हारी बात मान भी ली जाए तो भी तुमको पहले से स्थापित आस्था पर तरह तरह के प्रश्न खड़े करके,उसे चोट नहीं पहुचानी चाहिए।"
तर्क, भक्ति की बात सुनकर बोला,"मै किसी को चोट नहीं पहुचाना चाहता डीयर! पर मै क्या करुँ! मै तो इन्सान की मूल प्रवत्ति में हूँ। एक मै(तर्क) ही हू जो इन्सान को अन्य जीवधारियों से अलग करता हूँ। मेरे ही कारण मानवता ने इतना विकास किया है।"
भक्ति आवेश में आके बोला,"तुम कुछ नहीं हो।तुम बस एक अव्यवस्था हो।कभी खत्म ना होने वाले प्रश्न हो।क्या खाक विकास किया है तुमने मानवता का,तुम मानवता के लिए एक बेचैनी हो..कभी ना खत्म होने वाली अशांति हो।"
भक्ति की चुभती हुई बात सुनकर तर्क एक छड़ के लिए चुप हो गया लेकिन कुछ सोच के फिर बोला,"ठीक है भक्ति डीयर, वैसे तो तुम्हारी सारी बातें सही हैं। लेकिन अगर तुम्हारे ही नज़रिये से देखा जाए तो मुझे ये बताओ की भगवान ने इन्सान को सोचने के लिए बुद्धि और निर्णय लेने के लिए विवेक क्यूँ दिया है?
क्यूँ गीता में कृष्ण ने अर्जुन को हज़ारो प्रश्न करने दिया? क्यूँ नही बस एक बार जादू से फूक मार के अर्जुन की बुद्धि पलट दी।वो तो इश्वर थे,वो चाहते तो अर्जुन कोई तर्क नहीं कर पाता।मिनट भर में अर्जुन से जो चाहते वो करवा लेते।फिर किसलिए अर्जुन के ढ़ेर सारे प्रश्नो का उत्तर दिया?
मुझसे पूछो भक्ति भाई तो ऐसा उन्होने इसलिए किया क्युकि खुद भगवान ने ही इन्सानो को तर्क करने और अपने विवेक से हर चीज को समझने की एक नायाब कला दी है।और खुद ईश्वर इन्सान को इस कला से मरहूम नहीं करना चहता।"
तर्क की बात सुनकर इस बार भक्ति मुस्कुराते हुए बोला,"देखो भाई, तुम तर्क हो और मै तर्कों में तुमसे जीत नहीं सकता।लेकिन इसका ये मतलब नहीं की तुम सही हो और मै गलत हूँ।"
भक्ति की बात सुनकर तर्क के भी चहरे पे मुस्कुराहट आ गई और वो बोला,"भक्ति डीयर, मै तुमको गलत या सही साबित करने में नहीं लगा हूँ। मै तो तर्क हूँ।और तर्क करने से मुझे कोई रोक नहीं सकता।"
भक्ति अब आगे बढ़ता हुआ और लगभग हंसते हुए बोला,"चलो ठीक है तुम्हारी बात से थोड़ा-थोड़ा सहमत हूँ।लेकिन तर्क तक तो ठीक है पर उसकी जगह जब कुतर्क शुरु हो जाता है तब तुम आप्रासंगिक हो जाते हो।"
तर्क भी अपने रास्ते पे आगे बढ़ते हुए मुस्कुराकर भक्ति से बोला," सही कह रहे हो भाई लेकिन बुरा मत मानना तुम भी जब भक्ति की जगह 'अंधभक्ति' में बदल जाते हो तो नाकाबिले बर्दास्त हो जाते हो।
और इस तरह भक्ति और तर्क अपने अपने रास्ते पर चले जाते हैं।

                    ●दीपक शर्मा'सार्थक'

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