सब परेशान हैं

अगर थोड़ा ध्यान से देखा जाए तो पता चलेगा कि सब परेशान हैं..बस सबकी परेशानी अलग अलग है।
आम आदमी परेशान है की बाकी दुनियां उसके जैसा क्यों नहीं सोचती है। वहीं बुद्धजीवी परेशान है की वो दुनियां से कुछ अलग क्यों नहीं सोच पा रहा है।
विपक्षी परेशान है की उसे सत्ता की मलाई नहीं चाटने को मिल रही है।वहीं सत्ताधारी परेशान है की ये मलाई उसे बस पांच सालों के लिए चाटने को मिली है।कहीं ऐसा न हो की ये मलाई उससे छीन के विपक्षियों को मिल जाए।
अभिभावक परेशान है की उनके बच्चे कहीं पढ़ाई को ताख पे न रख दें। जिससे उनका अपने बच्चों को आइंस्टाइन और गैलीलियो बनाने का सपना अधूरा न रह जाए (हालाकि इन अभिभावकों के खुद के पर्सनल बापों ने भी उन्हें आइंस्टाइन बनाने की कोशिश की थी, जो पूरी नहीं हुई। इसलिये वो भी परेशान ही मर गये थे)। वहीं बच्चे अपने जाहिल बाप द्वारा लाख टेस्टोस्टिरोन हार्मोन्स (सेक्स हार्मोन्स) कुचले जाने के बाद भी दिन रात बस अपने बाबू अपने सोना से मिलने के लिए परेशान हैं।
तथाकथित राष्ट्रवादी दल इसलिए परेशान हैं क्योंकि उनके द्वारा राष्ट्रवाद की जो संकीर्ण परिभाषा बनाई गई है उसे पूरा देश मानने को तैयार नहीं हैं।वही सेकुलर इस लिए परेशान है क्योंकि...ठहरिए..ठहरिए ! सेकुलर क्यों परेशान है, इसका कोई तर्क ही नहीं बनता। सेकुलर स्वभाव से ही परेशान रहने वाला होता है।सेकुलर को अगर स्वर्ग भी भेज दो तो वो वहां के प्रशासन में भी एक हज़ार कमियाँ निकाल देगा और परेशान हो जायेगा। सेकुलर और परेशानी जैसे एक दूसरे में सन गई है,अगर मैथ की भाषा में कहा जाए -
'सेकुलर = परेशानी' तो ये गलत नहीं होगा।
भगवान ये सोच-सोच के परेशान है कि क्यों उसने बेहूदे इंसानों की प्रजाति को बनाया है, जो दिन रात कुकुरमुत्ते की तरह अपनी आबादी बढ़ाते जा रहे हैं।जिसके कारण पृथ्वी पर अन्य सारी प्रजातिया और जंगल खतम होते जा रहे हैं। वही इन्सान इसलिए परेशान है क्योंकि वो भगवान को अपनी बपौती समझता है। और दिन रात थोक के भाव में कुछ न कुछ भगवान से मांगा ही करता है। जब मांगा हुआ पूरा नहीं होता है तो फिर परेशान होके भगवान को कोसने लगता है।
तुम परेशान हो क्योंकि तम्हें रोज मेरे जैसे यायावर फक्कड़ आदमी के पोस्ट पढ़ने पड़ते हैं। वही मैं परेशान हूँ क्योंकि..क्योंकि..खैर छोड़ो हम कहाँ तक गिनायें, मेरी परेशानी की लिस्ट बहुत लम्बी है ! लेकिन आजकल मैं उन लड़कियों से परेशान हूँ जो 'विदआउट मेकअप फोटो चैलेंज' के नाम पे अपने एंड्रॉइड मोबाइल के ब्यूटी ऐप से फोटो लेके अपने दाग, धब्बे, मुहासे और झांई रहित चहरे को सोशल मीडिया पर डाल रही है(वैसे भी एंड्रॉइड मोबाइल से फोटो लेने पर मुँह चाहे करवा चौथ के चांद जैसा टेढ़ा ही क्यों न हो,पर सब अच्छा ही आता है)।और इससे भी बड़ी परेशानी ये है कि ये लड़कियां मन ही मन ये सोच के खुश हो रही हैं की मेरी फोटो को देख के दूसरे ये सोच रहे होंगे कि बिना मेकअप के मै कितनी अच्छी लग रही हूँ । फ़िलहाल तो मैं इसी परेशानी से जूझ रहा हूँ।आगे अगर कोई और परेशानी हुई तो आप को ज़रुर बताऊंगा।
कुल मिला के कहने का बस ये मतलब था कि सब परेशान हैं।

                       ●दीपक शर्मा 'सार्थक'

Comments

Popular posts from this blog

एक दृष्टि में नेहरू

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

क्या जानोगे !