इस ज़मीं पे रहो या बसो जा फलक
जिन्दगी जब तलक उलझनें तब तलक

एक अलग ही जहाँ को बसाये हुए
इतनी उम्मीद खुद से लगाए हुए 
दसियों सालों की प्लानिंग बनाए हुए
लाखों ख्वाबों को दिल में सजाए हुए
पल में डूबेगा सूरज मिलेना झलक
ज़िन्दगी जब तलक उलझनें तब तलक

पांच पुस्तों की परवाह करते हो जो
पड़के लालच में पैसे पे मरते हो जो
खामखां ही विवादों में पड़ते हो जो
गैरों को खीच के आगे बढ़ते हो जो
पाप का ये घड़ा जायेगा पर छलक
जिन्दगी जब तलक उलझने तब तलक

इस ज़मीं पे रहो या बसो जा फलक
जिन्दगी जब तलक उलझने तब तलक

               ● दीपक शर्मा 'सार्थक'


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