ऐसी सतर्कता किस काम की !

"बहुत लापरवाह हो !"
ये एक एेसा वाक्य है जो अक्सर मुझे अपने बारे में सुनना पड़ता है। शायद मैं लापरवाह हूँ भी! पर देखा जाए तो ज़िन्दगी का मज़ा तो लापरवाही में ही है।इसके पीछे मेरा अपना तर्क है। मुझे लगता है कि इस समय पूरी दुनियां के लोगो की सतर्कता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ग्लोबल वार्मिग के पीछे एक कारण ये भी है कि लोगो में सतर्कता का स्तर बढ़ता जा रहा है।
वैसे तो लोगो में बढ़ती सतर्कता के पीछे कई कारण हैं पर सतर्कता बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका नेताओ की है।
ये राजनेता दिन-रात मेहनत करके, कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर लोगो को सतर्क कर रहे हैं।इन नेताओ को डर है कि कहीं लोग धर्म और जाति को लेकर लापरवाह हो गए और आपस में घुल मिल कर रहने लगे तो वे बिचारे राजनीति कैसे करेंगे?
एक तरह से देखा जाए तो धर्म और जाति के आधार पर एक दूसरे के प्रति लोगो को सतर्क करने में नेता सफल रहे हैं पर इस सतर्कता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा 'प्रेम' है। मज़ेदार बात ये है कि प्यार तो लापरवाही में ही होता है, सतर्क व्यक्ति अकेला ही मरता है। उसे कभी प्यार नहीं होता है। पर नेता ही क्या जो हार मान जाए ! अब नेता प्रेम के प्रति लोगो को सतर्क कर रहा है। जैसे-जैसे सतर्कता बढती जा रही है, प्यार सिमिटता जा रहा है।नफरत का इज़हार तो लोग खुलेआम करते मिल जाएंगे लेकिन प्रेम के इजहार को लेकर बहुत सतर्क हो गए हैं। वे सतर्क हैं कि लोग क्या कहेंगे? अब किसी की आँखो में झाँक के देखो तो नीरस आँखो में प्रेम नहीं, सतर्कता मिलेगी।
 वर्तमान दौर, सतर्कता का दौर है। चारों तरफ से सतर्कता की वर्षा हो रही है।समाज को लेकर,रिवाजो को लेकर लोगो में सतर्कता बढ़ती जा रही है। ईश्वर के नाम पर मैसेज आ रहे हैं कि ये मैसेज १० लोगो को भेजो नहीं तो कुछ बुरा होगा। लोग बिचारे डर के मारे सतर्क हो गए है। टी.वी पक 'सावधान इण्डिया' जैसे प्रोग्राम आ रहे हैं जिसमें ज्यादातर किसी अवैध सम्बन्ध की घटना का अश्लील नाट्य रूपान्तरण दिखया जाता है जिसका उद्देश्य टी.आर.पी बटोरने के साथ-साथ लोगो को सतर्क करना है। सोशल मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया, बिना प्रमाण की ख़बरे दिखाकर लोगो को एक दूसरे के प्रति सतर्क करने में लगे हैं। माता-पिता बचपन से ही अबोध बच्चो को धर्म, जाति, लिंग के आधार पर सतर्क करने में लगे हैं। आई.पी.सी नए-नए कानून लाकर लोगो को सतर्क करने में लगा है।
इन सबके बीच बिचारा इंसान सतर्कता के बोझ तले दबता जा रहा है। मुझे हर किसी की आँखे सतर्कता के मारे नगाड़े की तरह चढ़ी नज़र आती हैं। कोई माने या न माने पर मुझे लगता है कि संसार के सारे मादक पदार्थ का नशा व्यक्ति इसी लिए करता है क्योंकि इससे थोड़ी देर के लिए ही सही,इंसान मदहोश जाता है और सतर्कता का बोझ कम हो जाता है। इसी लिए मादक पदार्थों  पर लगातार टैक्स बढने के बावजूद इसकी विक्री बढ़ती ही जा रही है।
ख़ैर! लापरवाही के अपने नुकसान हैं पर ऐसी सतर्कता किस काम की जो एक व्यक्ति को दूसरे से अलग कर दे!जो मजहब , जाति के नाम पर लोगो के बीच दीवार खड़ी कर दे! जो संसार से प्रेम को समाप्त कर दे। ऐसी सतर्कता किस काम की जो आने वाली पीढ़ी को अपने नए मूल्य एवं नए रास्तों को बनाने से रोके। ऐसी सतर्कता किस काम की जो अजनबियो से इतना डराए कि हम नए लोगो से मिलने से डरे!
थोड़ा सा लापरवाह होकर देखे.... ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है। एक ही जीवन मिला है और हम पूरा जीवन  सतर्क- सतर्क मर जाए...ऐसी सतर्कता किस काम की!

                    -- दीपक शर्मा 'सार्थक

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