कमाल के कारीग़र हो !

कमाल के कारीग़र हो !

बंजर होठों को खींच कर
फीकी मुस्कान से सींच कर
सारा दर्द पी जाते हो
कमाल के कारीग़र हो !

ऊसर उदासी को छुपाकर
झूठा उत्साह दिखाकर
बस यूँ ही जी जाते हो
कमाल के कारीग़र हो !

बेजान ख़्वाहिश को ओढ़ कर
टूटे सपनो को जोड़ कर
चाक़ जिगर सीं जाते हो
कमाल के कारीग़र हो !

सपनों को अपने छोड़ कर 
ख्वाहिशों का गला घोंट कर 
हर जिम्मेदारी निभाते हो 
कमाल के कारीगर हो !

              ©️   दीपक शर्मा 'सार्थक'

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