ऐसी सतर्कता किस काम की !
"बहुत लापरवाह हो !" ये एक एेसा वाक्य है जो अक्सर मुझे अपने बारे में सुनना पड़ता है। शायद मैं लापरवाह हूँ भी! पर देखा जाए तो ज़िन्दगी का मज़ा तो लापरवाही में ही है।इसके पीछे मेरा अपना तर्क है। मुझे लगता है कि इस समय पूरी दुनियां के लोगो की सतर्कता दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ग्लोबल वार्मिग के पीछे एक कारण ये भी है कि लोगो में सतर्कता का स्तर बढ़ता जा रहा है। वैसे तो लोगो में बढ़ती सतर्कता के पीछे कई कारण हैं पर सतर्कता बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका नेताओ की है। ये राजनेता दिन-रात मेहनत करके, कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर लोगो को सतर्क कर रहे हैं।इन नेताओ को डर है कि कहीं लोग धर्म और जाति को लेकर लापरवाह हो गए और आपस में घुल मिल कर रहने लगे तो वे बिचारे राजनीति कैसे करेंगे? एक तरह से देखा जाए तो धर्म और जाति के आधार पर एक दूसरे के प्रति लोगो को सतर्क करने में नेता सफल रहे हैं पर इस सतर्कता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा 'प्रेम' है। मज़ेदार बात ये है कि प्यार तो लापरवाही में ही होता है, सतर्क व्यक्ति अकेला ही मरता है। उसे कभी प्या...