कभी गौर किया है ! कुछ चहरे चीख चीख के बयां करते हैॆ अंदर का खालीपन कभी ध्यान दिया है ! कुछ आंखों में साफ झलकता है अंदर का वीरानापन कभी महसूस किया है ! कुछ लोगो की हंसी ज़ाहिर कर द...
अंधेरे में प्रकाश पुंज की तरह है पूर्णिमा मिटा दे नफ़रतो को प्रेम की धरा है पूर्णिमा जडत्व को हटाके 'चेतना' का जो करे उदय सरल हृदय मृदुल वचन सी निर्झरा है पूर्णिमा तिमिर में ...
ख़ुदी में डूबा सा बेजान है शहर पूरा कोई सुकून न उम्मीद हम रहें कैसे उमर ग़ुजर गई पूरी यूंही ख़यालो में जो बात दिल में है लब्ज़ो में हम कहें कैसे है वो नदी मेरा वजूद है तिनके ज...
कुछ लोग कभी सोचते नहीं केवल बोलते हैं ! कुछ लोग कुछ करते नहीं केवल टोकते हैं ! कुछ लोग आगे बढ़ते नहीं केवल रोकते हैं ! कुछ लोग हौसला बढ़ाते नहीं केवल कोसते है ! कुछ लोग किसी की सु...
भक ! स्टेटफार्वर्ड कहीं के ! दिल रखना भी नहीं आता हट ! प्रेक्टिकल कहीं के ! जज़्बातो में बहना नहीं आता धत ! डीसेन्ट कहीं के ! मनमर्जी से जीना नहीं आता भक ! सीरियस कहीं के ! कभी खुल के ...
संवेदनाए साम्यवादी हो गई है शायद ! न मिलने की ख़ुशी न बिछड़ने का ग़म न टूटने की इच्छा न जुड़ने का भ्रम न गिरने की सीमा न उठने का दम न होठो पे मुस्कुराहट न आंखे ही नम सोच भी नाज़...