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भारतीयता बनाम राष्ट्रवाद

एक तो राष्ट्रवादियों से मैं बहुत दुखी हूँ। जबतक ये हर चीज़..हर घटना..हर विषय को राष्ट्र से न जोड़ दें तक तक इनके पाचन ग्रन्थियों से खाना पचाने वाले एंजाम स्रावित नहीं होते। अ...

फीकी लगे दुनियां !

मिला के चटपती ख़्वाहिश बनाके स्वाद मनमाफ़िक बदल दे ज़ायका उसका अगर फीकी लगे दुनियां ! चलोगे कब तलक पीछे यूं ही गर्दन झुका करके अनोखा रच दे कुछ ऐसा तेरे पीछे भगे दुनियां ! सं...

पुरानी बात को छोड़ो !

नया ये साल आया है नई शुरुवात लेकरके गिले शिकवे भुला करके पुरानी बात को छोड़ो ! जो दिल में चोट है गहरी नज़रअंदाज़ कर दो तुम नए हालात में फिर से नए जज़्बात को जोड़ो ! गए जो रूठ कर ...

वही रफ्तार बेढंगी !

बने सरकार सेकुलर की या आ जाए कोई संघी बदलता कुछ नहीं यारो वही रफ्तार बेढंगी ! महामारी सी बीमारी से दूषित हो गया तन-मन कुपोषण,भुखमरी की आग में जलता रहा बचपन कभी है प्याज की किल...
रुक जा, जाने का नाम न ले न विरक्त गृहस्त से होना तू ! उगते रवि सा हो प्रशस्त सदा वैराग्य में अस्त न होना तू ! निष्काम ही कर्म तू करता जा बस लोभ में ग्रस्त न होना तू ! संसार के कुछ उद्...
हिमालय सा स्थिर नदी सा तरल हूँ हृदय में है अमृत जुबां से गरल हूँ ! सतह पर हूँ बहता कभी गहरा तल हूँ कहीं हूँ अस्थिर कहीं पर अटल हूँ ! कभी आने वाला कभी बीता कल हूँ युगों तक हूँ रहता ...

वो भगवान बन गया !

मिट्टी के घर को छोड़ के दौलत की चाह में बेजान पत्थरों का इक मकान बन गया ! दामन ज़रासा क्या फटा आलम तो देखिए अपनो की महेफिलों में भी अंजान बन गया ! कर्जे की बली चढ़ गया ऐसा किसान हूँ उतरे न जो कभी भी वो लगान बन गया ! हीरा तलाशने में कुछ यूँ हुए घायल वीरान कोयले सी कोई खान बन गया ! ऐसे तो शराफत के मुखौटे से हूँ ढ़का मौका ज़रा मिला नही शैतान बन गया ! दिल की कभी दिमाग़ की बातों में आके मैं तलवार दो सम्भालती मियान बन गया ! बातों के तीर मार के घायल किया सबको बनने चला था ढाल,पर कमान बन गया ! मेरी समझ से है परे इस देश का विधान हमने चुना था नेता वो भगवान बन गया !      © दीपक शर्मा 'सार्थक'