मेरी गर्दन हुसैन है
जो जुर्म की हैवानियत से है तेरा वज़ूद
तो रूह मेरी दीन के लिए बेचैन है
तू तो हराम से बनी दौलत पे है फिदा
मुझको तो मुस्तफ़ा के ही सज़दे में चैन है
जो खौफ़ से भरी तेरी तलवार है यज़ीद
तो फक्र से तनी मेरी गर्दन हुसैन है
कुछ भी नहीं तेरा समझ ले कायनात में
जो कुछ भी है रसूल की रहमत की देन है
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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