नया सवेरा
मौत का मंजर है फैला
हर तरफ छाया अंधेरा
काश दिन इक नया आए
प्यार का लेकर सवेरा
जा रही है जिंदगानी
आंख इतना रो चुकी
बाकी नहीं एक बूंद पानी
वेदना बेदर्द ने
उम्मीद को है रौंद डाला
बेबसी बहती रगों से
रिस रही मरती जवानी
अब उजड़ता जा रहा है
ख्वाब का हर एक बसेरा
काश दिन इक नया आए
प्यार का लेकर सवेरा !
अब तलक जो साथ थे
तिनके के माफिक बह गए हैं
वक्त के तूफान से
एक बार में ही ढ़ह गए हैं
थी गलतफ़हमी जिन्हें
वो धाम लेंगे आसमाँ को
अपने घर की छत गिरी
और हाथ मलते रह गए हैं
हौसले की जमा पूंजी
ले गया कोई लुटेरा
काश दिन इक नया आए
प्यार का लेकर सवेरा !
©️ दीपक शर्मा 'सार्थक'
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