वो गिराते रहे..हम बनाते रहे !
पूरी शब बेसबब यूं ग़ुज़रती रही
वो बिगड़ते रहे हम मनाते रहे!
उनकी नाराज़गी पर भी सदके मेरे
हम मोहोब्बत में पलके बिछाते रहे!
वो न समझे मेरे प्यार को अब तलक
जबकि दिल खोल कर हम दिखाते रहे!
जबसे दीवार रिश्ते में बनने लगी
कोशिशें करके उसको गिराते रहे !
उनका लहेजा था इतना तपिश से भरा
मेरे दिल को उसी में जलाते रहे !
हमको उनसे शिकायत बहुत थी मगर
ग़म छुपाके सदा मुस्कुराते रहे !
उनकी संजीदगी उनकी ख़ामोशिया
हाले दिल उनको लेकिन सुनाते रहे !
पूछों न दिल की बुनियाद कैसे बची
वो गिराते रहे हम बनाते रहे !
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
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