लट्ठ और प्रेम

अरे भई 'लट्ठ' ऐसे तने हुए ग़ुस्से में कहां जा रहे हो ?
"ये पूछने वाले तुम कौन हो बे!" लट्ठ प्रश्न के उत्तर में प्रश्न दागते हुए अकड़ कर बोला।
"मुझे नहीं पहचाना..मैं 'प्रेम' हूँ" लट्ठ को बड़ी ही शालीनता के साथ प्रेम ने उत्तर दिया।
"ओह तो तुम्हीं 'प्रेम' हो" लट्ठ बिदक के बोला,"मैं तुम्हारी ही तलाश में था।तुमने ही चारों तरफ माहौल ख़राब कर रखा है।
तुम्हारा कुछ इलाज करना पड़ेगा !"
"मैने ऐसा क्या कर दिया लट्ठ भाई !" प्रेम अचरज से बोला।
"भाई न भौजाई ! तुम मेरे यानि लट्ठ के भूखे हो।तुमसे हमारी संस्कृति और परम्पराओ को ख़तरा है। तुमने देश के युवाओं का दिमाग़ ख़राब कर रखा है।पार्कोंं में लड़के लड़की खुलेआम चुम्मा चाटी करते फिरते हैं।इंसान और कुत्ते में कोई अंतर नहीं रह गया है। दोनो जहां पाते हैं शुरू हो जाते हैं।इस सबके ज़िम्मेदार तुम हो और बेशर्मी के साथ पूछते हो तुमने क्या किया है?" लट्ठ आगबबूला होकर बोला।
"लट्ठ भाई, इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है। तुमने ही परम्पराओ और संसकृति के नाम पर इस युवा पीढी को इतना जकड़ दिया कि इनके हृदय में प्रेम के स्रोत सूख गया और उसका स्थान 'हवस' ने ले लिया। आज कल जो कुछ भी हो रहा है वो इसी हवस रूपी विकार के कारण हो रहा है।"
ये सुनकर लट्ठ तमतमा कर बोला," ज़्यादा लेक्चर मत झाड़ो ! इन लड़के लड़कियों को जकड़ कर रखना बहुत ज़रूरी है वरना अंतर्जातीय विवाह होने लगेंगे। न जाने कौन किस जाति विरादरी में शादी कर ले, क्या भरोसा!"
" तो इसमें बुरा क्या है..इसी बहाने जाति पाति रूपी कुरीतियां खत्म हो जाएं..ये तो आधुनिक समाज के लिए अच्छा ही है" प्रेम ने शालीनता के साथ अपना तर्क दिया।
"अभी लट्ठ पड़ेगा तो तुम्हारी खोपड़ी दो फुट ऊंची हो जाएगी..जिसमें इतने बेहूदे ख़याल आते हैं! प्रेम विवाह को हम कभी स्वीकार नही सकते हैं। प्रेम विवाह से उत्पन्न बच्चे हमारे समाज में अवैध समझे जाते हैं।" लट्ठ बिदक कर प्रेम पर बरसते हुए बोला।
प्रेम, लट्ठ की बात सुनकर थोड़ी देर चुप रहा।फिर धीरे से बोला,"अच्छा लट्ठ भाई यदि तुम्हारी बात को सही मान लिया जाए तो फिर इस हिसाब से दुष्यंत और शकुंतला की औलाद 'भरत' , जिनके नाम पर इस देश का नाम 'भारत' पड़ा, वो भी अवैध संतान ही हुए क्योंकि भरत, राजा दुष्यंत और शकुंतला के गंधर्व विवाह(वो विवाह जिसमे शादी से पूर्व ही शारीरिक संबन्ध बन जाते हैं) से उत्पन्न पुत्र थे।"
धड़ाम....धड़ाम.....धड़ाम
आगे कोई वार्तालाप नहीं हुआ क्योंकि लट्ठ के पास इसका कोई उत्तर नहीं था।इसलिए वो अपने स्वभाव के अनुरूप प्रेम पर बरसने लगा।

                        © दीपक शर्मा 'सार्थक'

Comments

Popular posts from this blog

एक दृष्टि में नेहरू

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

क्या जानोगे !