चूँकि वो बुद्धिमान हैं !

बिचारे 'वो' बहुत परेशान रहते हैं।ये परेशानी उन्होंने स्वयं ही पैदा की है।न जाने उनको एक दिन क्या सूझा जैसे गणित में कोई चीज़ मान ली जाती है वैसे ही उन्होंने मान लिया है कि वो बुद्धिमान हैं।बस तभी से बिचारे वो परेशान रहने लगे हैं। हो भी क्यों न..आखिर उनके मानने से तो काम चल नहीं सकता कि बुद्धिमान है।ये बात दूसरों को भी मालूम होनी चाहिए। इसलिए वो ये बात दूसरो को बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।और जहां भी मौका मिलता है वो पूरी दुनियां को चीख-चीख कर बताने में लगे हैं कि वो बुद्धिमान हैं।चूँकि वो बुद्धिमान हैं और चूँकि एक बुद्धिमान व्यक्ति का पहला लक्षण ये है कि वो सामने वाले को मूर्ख समझे..इसलिए मजबूरी वश उनको दुनियां मूर्ख नज़र आने लगी है।
उनका अपने प्रति गज़ब का मानदण्ड है। उदाहरण के तौर पर अगर उन्होंने सामने वाले से कोई बात बोली और वो बात सामने वाले के समझ में नहीं आई तो वो फिर सामने वाला मूर्ख है। लेकिन अगर सामने वाला कोई बात बोला और वो बात उनके ऊपर से गई तब भी वो झट से मान लेते हैं कि ज़रूर सामने वाला ही मूर्ख है। क्योंकि वो बुद्धिमान हैं और उसके बावजूद उनको सामने वाले की बात समझ नहीं आई है।तो इसका सीधा सा मतलब है कि ज़रूर सामने वाले ने कोई मूर्खता भरी ही बात कही होगी। तभी उनके जैसे बुद्धिमान व्यक्ति के समझ में नहीं आई।
एक चुनाव में उन्होंने एक नेता को वोट दिया था। अब चूँकि वो बुद्धिमान हैं और उन्होंने किसी नेता को चुन लिया है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि वो नेता भी बुद्धिमान है।यदि उस नेता में कोई कमी हो तो उसे वो स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि वो बुद्धिमान हैं और चूँकि वो नेता उनके द्वारा चुना गया हैं।अत: उस नेता में कमी निकालना मतलब उनकी बुद्धिमत्ता को चुनौती देना..जिसे वो कतई बर्दास्त नहीं कर सकते।
एक कहावत है कि बुद्धिमान व्यक्ति भावनाओ में नहीं बहता पर इसके उलट वो भावनाओ में मात्र बहते नहीं हैं बल्कि डूब जाते हैं।और इस तरह अगर सामने वाले की कोई बात या तर्क उनको अच्छा नहीं लगता तो उसकी कोई तार्किक विवेचना या आलोचना करने के स्थान पर वो सीधे स्टेटमेन्ट दे देते हैं कि,"तुम मूर्ख हो..तुम्हारी बात ग़लत है !"
अब चूँकि वो बुद्धिमान हैं और बुद्धिमान व्यक्ति जो बोले वो सच ही होता है अत: उनको सामने वाले व्यक्ति के बात की तार्किक विवेचना या आलोचना करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।और इसी आधार पर  उनके स्टेटमेन्ट का विरोध करने वाले को भी वो मूर्खों की श्रेणी में रखते हैं।
उनकी बुद्धिमत्ता एकदम मिलावटी नहीं है।वो एक सच्चे बुद्धिमान व्यक्ति की तरह हर दूसरे सफल और बुद्धिमान व्यक्ति के कम्पटीशन में मन ही मन कढाई में चढ़ी दाल की तरह चुरते रहते हैं।अपने आस-पास कोई दूसरा बुद्धिमान व्यक्ति वो बर्दास्त नहीं कर सकते।
चूँकि वो बुद्धिमान हैं और उनको पता है कि बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा चर्चा में बना रहता है अत: वो अक्सर फेसबुक और ह्वाट्सऐप पर दूसरों के लिखे विचार कट पेस्ट करके अपने नाम  से भेजते रहते हैं।पर उनको किसी ने बता दिया कि बुद्धिमान व्यक्ति का एक लक्षण ये भी है कि वो अपने स्वयं के शोध भी करता है। इस कारण उन्होंने हाल ही में एक शोध भी कर डाला है। अपने शोध में वो बताते हैं कि "बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी बात मजबूती से कहनी चाहिए तभी बात का प्रभाव पड़ता है।वो आगे कहते हैं कि जहां तक हो सके अपनी बात को खुब ज़ोर से खींच कर सामने वाले के मुह पर मारना चाहिए। इस तरह बोलने की शैली से सामने वाला व्यक्ति गोपचे में आ जाता है। और बात का विरोध नहीं कर पाता है। और चूँकी जिसकी बात का विरोध न हो वही व्यक्ति बुद्धिमान समझा जाता है। अत: बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसे ही बोलना चाहिए।"
अब उनका कहना है कि उनके शोध को सभी को स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि वो बुद्धिमान हैं और बुद्धिमान व्यक्ति जो शोध करता है वो सही ही होता है। उसपर प्रश्न मूर्ख ही उठाते हैं।

              © दीपक शर्मा 'सार्थक'

Comments

Popular posts from this blog

एक दृष्टि में नेहरू

वाह रे प्यारे डिप्लोमेटिक

क्या जानोगे !