प्रभात वर्णन
प्रभात की प्रभा से
खिल उठी वसुंधरा सकल
जो शून्य था, प्रकट हुआ
अदीप्त दीप्त हो गए !
मधुर धुने प्रकृति के
हर कणो में गूजने लगी
वैराग रागमय हुआ
निर्लिप्त, लिप्त हो गए!
तिमिर को चीरते किरण
प्रकाश की जहां पड़ी
जो अब तलक अशान्त थे
वो शान्त चित्त हो गए !
मुहुर्त ब्रह्म में खिले-खिले
हृदय, मिले हृदय
प्रेम का हुआ उदय
विषाद रिक्त हो गए !
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
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