रंग मर रहे हैं !

ये तो तय है कि ये मृत्युलोक है। यहाँ कुछ भी शाश्वत नहीं है।इंसानो का क्या है..वो तो मरते ही रहते हैं।उनकी मौत पर मुझे अब अचरज नहीं होता। लेकिन यहाँ मामला कुछ और ही है।शायद आप को ये जान कर हैरानी हो कि अब 'रंग' मर रहे हैं। अभी कुछ ही दिन की तो बात है 'सफेद रंग' मर गया और किसी को कानोकान ख़बर भी नहीं हुई।हमारे देश के सियासतदानो ने बेरहमी के साथ 'सफेद रंग' को मार डाला। इन नेताओ ने अपने सारे कुकर्म,अपराध और ग़न्दगी इसी 'सफेद रंग' के नीचे ढक रखी थी।बिचारा 'सफेद रंग' कब तक बर्दास्त करता..मर गया !
जिस तरह कोई एक घर का कमाने वाला व्यक्ति मर जाए तो उस पर आश्रित बीबी बच्चे भी एक तरह से मर जाते हैं..ठीक उसी तरह 'सफेद रंग' के मरने के साथ ही सादगी, सच्चाई और स्वच्छता की भी मृत्यु हो गई है।
खादी के बारे में महत्मा गांधी ने एक बार कहा था कि
"खादी चरित्र के समान होती है। जिस तरह खादी पर यदि कोई दाग़ लग जाए तो वो दूर से ही नज़र आने लगता है।उसी तरह चरित्र पर यदि दाग़ लग जाए तो वो भी दूर से नज़र आने लगता है।"
गांधी के बाद उनके नाम पर सियासत करने वाले ठेकेदारों ने इस 'सफेद रंग' पर इतने दाग़ लगाए कि बिचारा 'सफेद रंग' मर गया।जबकि ये हत्यारे सियासतदान आज भी बेशर्मों की तरह खुलेआम घूम रहे हैं।
अब जब इन सियासतदानो ने 'सफेद रंग' की आत्मा को मार डाला तो उसके शरीर का आकर्षण कब तक रहता? अत: लोगो के दिलों में 'सफेद रंग' को लेकर जो आकर्षण था वो समाप्त हो रहा है।
इसी बीच अब नेता 'भगवा रंग' को अपनाने लगे हैं। हर जगह 'भगवा रंग' फैलाया जा रहा है।हर नेता भगवाधारी हो रहा है।यानि अब 'भगवा रंग' की बारी है। एक दिन इस रंग को भी ये नेता मार डालेंगे।ये रंग भी चुभने लगेगा। क्योंकि इन रंगो की खोल में जो सियासतदान बैठे हैं..वो किसी के नहीं हैं।ये अपने चरित्र से रंगो के चरित्र को दबाकर मार डालेंगे। फिर इसके बाद किसी अदले रंग की बारी होगी। ये नेता कितनी जल्दी रंग बदलते हैं ये तो जग जाहिर है।

                  © दीपक शर्मा 'सार्थक'

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