सत्यमेव जयते !
ये तो तय है कि देश परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है।नए-नए कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं।वैसे अभी तक ये कीर्तिमान स्थापित करने का ठेका सरकारों के पास होता था पर अब इसके झोके में सुप्रीमकोर्ट के जज भी आ गए हैं। हाल ही में सुप्रीमकोर्ट के चार वरिष्टतम जज अचानक मीडिया के सामने आते हैं और उस मीडिया को अपनी अंतरआत्मा की आवाज सुनाते हैं जो मीडिया कबका अपनी अन्तरआत्मा बेच चुकी है।इन जजो ने कुछ भी स्पष्ट न कहते हुए इतना बताया की न्यायपालिका ख़तरे में हैं..लोकतंत्र ख़तरे में है।और इसी आधार पर माननीय मुख्य न्यायधीश पर उगली उठा दी। और इस तरह सुप्रीमकोर्ट की शाख को ताख पर रखकर ये न्यायधीश अपनी साख बचाने के लिए खुलेआम मैदान में आ गए।
इन जजो का मानना था कि जब पानी सर के ऊपर आ गया तो वो देश की जनता के सामने आए हैं। और इस तरह सुप्रीमकोर्ट के ऊपर खड़े होकर उसकी साख को ढुबोकर इन जजो नें अपने आप को ढूबने से बचा लिया।बिचारी भोली भाली मासूम जनता जो केवल 'राष्ट्रवादी और देशद्रोही' नामक दो ही मुद्दों से वाकिफ है, ने उक्त घटना को उन्ही मानदण्डो से तौलना शुरू कर दिया।
ख़ैर इन जजो ने सही किया या ग़लत किया या उसके क्या परिणाम होंगे ये तो समय ही बताएगा पर इन सबके बीच इतना तो तय है कि न्यायपालिका में सब कुछ सही नहीं चल रहा है।और ये समस्या आज की नहीं है। इनकी जड़ें गहरी हैं।
सत्ता में आते ही नई सरकार ने न्यायपालिका के प्रति जो नज़रिया अपना रखा है वो जग जाहिर है।
जजो की नियुक्ति को लेकर 'काॅलेजियम' का विरोध करते हुए 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' का कानून संसद से पास किया गया। सरल शब्दों में कहें तो न्यायधीशो की नियुक्ति में सरकार अपना हस्तक्षेप चाहती थी।ताकि सुप्रीमकोर्ट को भी सी.वी.आई. की तरह अपना पालतू तोता बना ले।लेकिन वर्तमान विवाद में शामिल न्यायमूर्ति 'जे. चलमेश्वर', 'कूरियन जोसफ', 'एमबी लोकुर', तथा 'एके गोयल' एवं पूर्व मुख्य न्यायधीश 'जेएस खेहर' की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने NJAC(राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) कानून को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया।
इसके साथ ही 'काॅलेजियम' व्यवस्था के बदले नई व्यवस्था के लिए 99वें संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार दिया।
वर्तमान समय में जजो की नियुक्ति एवं तबादलो का फैसला, मुख्यन्यायधीश के नेतृत्व में बनी सीनियर जजो की समिति के माध्यम से होती है जिसे 'काॅलेजियम' कहा जाता है। सरकार का जजो की नियुक्ति में कोई भी हस्तक्षेप नहीं है। और ये सरकार को अच्छा नहीं लगता है।
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका कार्यपालिका के लिए गले की हड्डी बन जाती है।अत: कोई भी सरकार नहीं चाहती की न्यायपालिका स्वतंत्र रहे। इसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि जब सरकार जजो की नियुक्ति को लेकर संसद में कानून लाई तो किसी भी राजनीतिक पार्टी ने उसका विरोध नहीं किया।
वर्तमान समय में जितनी भी स्वतंत्र संस्थाए हैं वो चाहे 'चुनाव आयोग' हो या 'सी.वी.आई.' हो, सभी सरकारों के आगे बेबस हैं। बस सुप्रीमकोर्ट ही है जो कार्यपालिका की आँखों में आँखे डालकर सवाल जवाब कर सकती है..जनता को न्याय दिला सकती है। और सरकार उसी का गला घोटने पर आमादा है।
और इसके तहत काॅलेजियम के तहत जिन जजों का नाम न्यायपालिका नें भेजा है..सरकार ने उनको रोक रखा है। और पूरी तरह जजों की नियुक्ति में बाधक बनी हुई है।
पूर्व मुख्य न्यायधीश 'टी.एस.ठाकुर' ने लगभग रोते हुए एक मंच से न्यायधीशो की कमी और उनकी नियुक्ति को लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री के सामने बात रखी थी।जिसपर उन्होने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। क्योकि उनके पसंदीदा जजो का नाम काॅलेजियम ने नहीं सुझाया था।
हम सभी जानते हैं कि राजनीतिक पार्टियां केवल वोट बैंक की राजनीति करती हैं।ऐसे में स्वतंत्र न्यायपालिका हमारा वजूद बचाए रखने के लिए आवश्यक है।न्यायपालिका का कमज़ोर होना मतलब देश का कमज़ोर होना है।
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
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