काश अगर मैं नेता होता !
काश अगर मैं नेता होता !
जाति के नाम पे बटवाकर
कभी धर्म की बीन पे नचवाकर
जाहिल गँवार इस जनता को
हरदम यूँ ही ठगता होता
काश अगर मैं नेता होता !
खद्दरधारी गमछाधारी
टीकाधारी इच्छाधारी
हर खोल के अंदर छुपके मैं
वहशीपन को ढकता होता
काश अगर मैं नेता होता !
भुखमरी पे भाषण देता मैं
भूखों का हक़ खा लेता मैं
इस देश की अर्थव्यवस्था की
जड़ में घुस कर घुनता होता
काश अगर मैं नेता होता !
टेंडर लेता मनमर्ज़ी के
देता ठेका बस फर्जी के
फिर पाँच सितारा होटल में
सुर बाला संग लेटा होता
काश अगर मैं नेता होता !
© दीपक शर्मा 'सार्थक'
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